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अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय और काल। संपूर्ण लोक इन छह द्रव्यों का समूह है। यह छहों द्रव्य परिणमनशील हैं। इनमें प्रतिसमय नयी-नयी अवस्थाओं की उत्पत्ति होती रहती है, नयी-नयी अवस्थाओं की उत्पत्ति के साथ ही पूर्व-पूर्व की अवस्थाओं का विनाश भी होता है। यह इनका उत्पाद और व्यय है। पूर्वावस्था के विनाश और नयी अवस्था की उत्पत्ति के बावजूद पदार्थ में स्थायित्व बना रहता है। यह अवस्थिति ही ध्रौव्य हैं जैसे - पुद्गल दूध से दही बना। दूध का विनाश और दही का उत्पाद हुआ। परन्तु गोरस ध्रौव्य रहा।
षड्द्रव्यों में प्रतिसमय उत्पादादि तीनों लक्षण घटित होते हैं।850 छहों द्रव्यों में से कोई भी द्रव्य, किसी भी समय उत्पादादि लक्षणों से रहित नहीं होता है। प्रत्येक द्रव्य, प्रतिसमय उत्पादादि लक्षणों से युक्त रहता है। उत्पादादि तीनों लक्षणों में से कोई एकाध लक्षण हो और एकाध लक्षण न हो, ऐसा भी नहीं होता है। प्रत्येक द्रव्य पूर्व पर्यायों से व्यय और उत्तर पर्यायों से उत्पाद को प्राप्त होते हुए द्रव्यत्व की अपेक्षा से ध्रुव रहता है।
प्रश्न उठ सकता है कि एक ही पदार्थ में एक साथ उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य की संगति कैसे बन सकती है, क्योंकि ये तीनों परस्पर विरोधी लक्षण हैं उत्पाद के साथ व्यय और उत्पाद-व्यय के साथ स्थायित्व कैसे घटित हो सकता है? उपाध्याय यशोविजयजी इस विरोध का परिहार करते हुए कहते हैं – ऊपर-ऊपर से देखने पर ही इस विसंगति की प्रतीति होती है, परन्तु परमार्थ दृष्टि से देखने पर उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य में कोई विरोध परिलक्षित नहीं होता है। जल में शीतलता है, उष्णता नहीं है तथा अग्नि में उष्णता है, शीतलता नहीं है। शीतलता और उष्णता एक दूसरे के अभाव में ही विद्यमान रहते हैं, ऐसा प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता। इस प्रकार के परस्पर विरोधी दो गुण या वस्तु एक साथ विद्यमान रहते हैं, ऐसा कहने पर विरोध आ सकता है। परन्तु उत्पादादि तीनों लक्षण एक स्थान पर एक ही साथ विद्यमान रहते हुए प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। उत्पाद के बिना व्यय, व्यय के बिना
650 उत्पाद व्यय ध्रव पणई, छई समय समय परिणाम रे।
षड़द्रव्यतणो प्रत्यक्षथी, न विरोधतणो ओ ठाम रे।। ................ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/2
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