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________________ 239 रहती है।639 कोयले के जल कर राख बन जाने पर भी उसके पुद्गलत्व रूप मूल स्वरूप की हानि नहीं होती है। उपचय और अपचय होने पर भी द्रव्य की सत्ता बनी रहती है। इस प्रकार उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य इन तीनों अवस्थाओं से युक्त सत् ही द्रव्य का लक्षण है।640 आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने भी जिसमें उत्पाद स्थिति और भंग हो उसे ही द्रव्य के रूप में अभिव्यंजित किया है। 41 उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य में अविनाभाव सम्बन्ध है। उत्पाद के बिना व्यय और व्यय के बिना उत्पाद संभव नहीं है। ध्रौव्य के अभाव में उत्पाद और व्यय भी घटित नहीं हो सकते हैं।42 क्योंकि उत्पाद और व्यय को घटित होने के लिए कोई आधार चाहिए और व आधार ही ध्रौव्य है। चेतन और अचेतन सभी द्रव्य उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप त्रिलक्षण से युक्त हैं। अकलंक ने भी उत्पाद व्यय और ध्रौव्य से युक्त अस्तित्व को ही द्रव्य कहा है।643 समन्तभद्र ने द्रव्य को त्रयात्मक रूप से परिभाषित करके उस त्रयात्मक द्रव्य के स्वरूप को सुवर्ण, सुवर्ण घट और सुवर्णमुकुट के उदाहरण से स्पष्ट किया है।44 सुवर्ण घट का इच्छुक व्यक्ति सुवर्णघट के ध्वंस हो जाने पर दुःखी होता है। सुवर्णमुकुट का इच्छुक सुवर्णमुकुट के तैयार होने पर हर्षित होता है, जबकि सुवर्णार्थी व्यक्ति सुवर्णघट के नाश और सुवर्णमुकुट के उत्पाद दोनो ही स्थिति में मध्यस्थ भाव से रहता है, क्योंकि सुवर्णत्व का अस्तित्व दोनों ही अवस्थाओं में बना रहता है। इस प्रकार एक ही समय में दुःख, हर्ष और मध्यस्थ भाव होने से स्पष्ट हो जाता है कि वस्तु त्रयात्मक है। ......... 639 पाडुब्भवदि च अण्णो पज्जाओ ... प्रवचनसार, गा. 2/11 640 उत्पादस्थितिभंगैर्युक्तं ........... पंचाध्यायी, का. 1/86 641 दव्वं पज्जवविउयं ............. सन्मतिसूत्र, गा. 1/2 642 ण भवो भंगविहिणो भंगो वा पत्थि संभवविहणो उत्पादो वि भंगो न विणा धोव्वेण अव्येण .......... प्रवचनसार, गा. 1/8 643 राजवार्तिक, सू. 5/29 644 घट-मौली-सुवर्णार्थी ............. आप्तमीमांसा, का. 59 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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