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________________ 238 उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य के आधार पर - तत्त्वार्थसूत्र33 में 'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्' कहकर सत् को उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त स्वीकार किया गया है और सत् को द्रव्य के लक्षण के रूप में प्रतिपादित किया है। आचार्य कुन्दकुन्द ने पंचास्तिकाय34 और प्रवचनसार 35 में द्रव्य को सत् लक्षणवाला तथा उत्पाद–व्यय-ध्रौव्य से युक्त बताया है। बाह्य और आंतरिक दोनों निमित्तों को पाकर अपने स्वभाव का त्याग किये बिना नवीन अवस्था की प्राप्ति उत्पाद है और पूर्व अवस्था का त्याग व्यय है।636 अनादि पारिणामिक स्वभाव का बना रहना ध्रौव्य है। 37 पूज्यपाद ने उत्पाद-व्यय और ध्रौव्य को घट के उदाहरण से समझाया है। मिट्टी के पिण्ड का घट पर्याय के रूप में उत्पन्न होना उत्पाद है। मिट्टी के पिण्डरूप पूर्व पर्याय का नाश होना व्यय है। पिण्डपर्याय और घटपर्याय दोनों ही अवस्थाओं में मिट्टी का अन्वय बना रहना ध्रौव्य है। पंडित सुखलालजी के कथनानुसार स्वजाति को न छोड़ना ही द्रव्य का ध्रौव्य है तथा प्रतिक्षण अलग-अलग परिणामों से उत्पन्न और नष्ट होना उसका उत्पाद और व्यय है। उत्पाद–व्यय-ध्रौव्य का यह चक्र द्रव्य में चलता रहता है।638 प्रत्येक पदार्थ में उत्पाद–व्यय रूप परिवर्तन प्रतिसमय घटित होता रहता है। इस परिणमन के मध्य कुछ ऐसा परिणमनशील तत्त्व अवश्य होता है जो सर्वदा स्थायी रहता है। उत्पत्ति और विनाश रूप परिणमन के मध्य भी द्रव्य अपने अनादि पारिणामिक स्वभाव का उल्लंघन नहीं करता है। द्रव्य की एक पर्याय का व्यय होता रहता है, दूसरी पर्याय का उत्पाद भी होता रहता है, परन्तु द्रव्य की ध्रुवता बनी ........... 633 तत्त्वार्थ सूत्र - 5/29 634 दव्वं सल्लक्खणयं ................ पंचास्तिकाय, गा. 10635 अपरिच्चसहावेणुप्पादत्वयधुवतसंजुतं .............. प्रवचनसार, 2/3 636 सर्वार्थसिद्धि, 5/30/584 637 सर्वार्थसिद्धि, 5/30/584 638 तत्त्वार्थसूत्र, पं. सुखलालजी, पृ. 136 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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