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________________ I यहां सत् से 'अस्तित्व' अर्थ ही अभिलषित है । अस्तित्व को द्रव्य का लक्षण बताया गया है। द्रव्य का अस्तित्व त्रिकालवर्ती है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि द्रव्य का अस्तित्व नहीं रहा हो या नहीं हो या नहीं होगा। इसी बात को पुष्ट करते हुए प्रवचनसार की तात्पर्यवृत्ति में लिखा है निश्चित् रूप से अस्तित्व ही द्रव्य का लक्षण है, क्योंकि अस्तित्व किसी अन्य निमित्त से उत्पन्न नहीं होता है। वह स्वतन्त्र और अनादि अनंत एकरूप प्रवृत्ति से अविनाशी होता है। 607 पंचाध्यायी में 'तत्त्वं सल्लाक्षणिकं' और 'सन्मात्रं वा' इस तरह द्रव्य के दो लक्षण दिये हैं। 08 प्रथम लक्षण में तत्त्व को 'सत् ́ लक्षण वाला बताकर सत् और तत्त्व में लक्ष्य - लक्षणकृत कथंचित् भेद किया है। द्वितीय लक्षण के अनुसार सत् स्वरूप ही तत्त्व है। इसमें सत् और तत्त्व में कथंचित् अभेद परिलक्षित होता है। वेदान्त और वैशेषिक मत का समन्वय इन दोनों लक्षणों के द्वारा किया गया है । वेदान्तदर्शन सत् को एक और अभिन्न मानता है, जबकि वैशेषिक दर्शन सामान्य और विशेष को पृथक-पृथक मानकर सत् और तत्त्व में भेद करता है । यद्यपि गुण, गुणी के भेद से अस्तित्वगुण द्रव्य से पृथक् कहा जाता है, परन्तु प्रदेश भेद के बिना द्रव्य में एकरूप होकर रहता है। इसी कारण से तत्त्वार्थभाष्य में उमास्वातिजी ने सत् द्रव्य लक्षणं कहकर दोनों में अभेद स्थापित किया है। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि 'सत्' शब्द सामान्य या अपरिवर्तशील सत्ता का और 'द्रव्य' शब्द विशेष या परिवर्तनशील सत्ता का सूचक है । दोनों में अस्तित्व या सत्ता की अपेक्षा से भेद नहीं है परन्तु व्युत्पत्तिपरक अर्थ की अपेक्षा से ही भेद है। केवल विचार के स्तर पर ही भेद कर सकते हैं, किन्तु सत्ता की अपेक्षा से नहीं । सत् और द्रव्य अन्योन्याश्रित हैं। 09 अस्तित्व (सत् ) के बिना द्रव्य और द्रव्य के बिना अस्तित्व का संभाव्य नहीं है । लक्षण और लक्षित भिन्न नहीं हो सकते हैं। 607 अस्तित्व ही किल द्रव्यस्य - प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति, पृ. 115 608 तत्त्वं सल्लाक्षणिकं सन्मात्रेवा यतः स्वतः सिद्धम् - पंचाध्यायी, श्लो. 1/8 609 जैनदर्शन में द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणा डॉ. सागरमल जैन, पृ. 5 232 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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