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उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य से युक्त बताकर सत्ता के परिणामी नित्यता को सूचित किया है।95 प्रत्येक वस्तु में दो अंश होते हैं, – स्थिर और अस्थिर। स्थिर अंश के कारण वस्तु धैव्यरूप होती है और अस्थिर अंश के कारण वस्तु उत्पाद-व्ययरूप होती है। इस प्रकार सत् (द्रव्य) उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य से युक्त होता है। उमास्वातिजी द्वारा प्रदत्त प्रस्तुत सत् का लक्षण अन्य दर्शनों के सत् स्वरूप से जैनदर्शन सम्मत सत्स्वरूप के वैलक्ष्णय को प्रतिपादित करता है। ध्रौव्यांश द्रव्य का गुण है और उत्पाद-व्ययांश द्रव्य के पर्याय है। इस प्रकार द्रव्य, गुण और पर्याय से युक्त होने से उमास्वातिजी ने गुण के साथ पर्याय शब्द की संयोजना करके अगला सूत्र ‘गुणपर्यायवद् द्रव्यम्'596 दिया है।
___ आचार्य कुन्दकुन्द ने द्रव्य का लक्षण और सत्लक्षण की पृथक विवक्षा न करके एक ही स्थान पर दोनों का समन्वित लक्षण प्रदान किया है। इनके अनुसार जब द्रव्य सत् है और सत् ही द्रव्य है तो इन दोनों के लक्षण में भी भेद नहीं होना चाहिए। अतः उमास्वातिजीकृत सत्, नित्य व द्रव्य तीनों की परिभाषाओं का सम्मिलित निदर्शन द्रव्य के लक्षण में किया है। आचार्य कुन्दकुन्द की दृष्टि में द्रव्य सत् लक्षण वाला, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य से युक्त, गुण पर्यायों का आश्रय है।597 इस प्रकार कुन्दकुन्द ही प्रथम जैन दार्शनिक हैं, जिन्होने अपने पंचास्तिकाय और प्रवचनसार में द्रव्य की अवधारणा की व्याख्या विस्तार से प्रस्तुत की है। ____ आचार्य सिद्धसेन के अनुसार जिसमें उत्पाद-स्थिति-भंग हो वह द्रव्य है। द्रव्य पर्याय से युक्त है।98 सत् को सामान्य और विशेष उभयरूप माना है। सर्वार्थसिद्धि में स्वपर्यायों को प्राप्त होने वाला अथवा उन्हें प्राप्त करने वाले को द्रव्य कहा है।99
595 तत्वार्थसूत्र – 5/29 596 वही, 5/37 597 प्रवचनसार - 2/3 598 सन्मतिसूत्र – 1/12 599 सर्वार्थसिद्धि, 5/2 पृ. 529
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