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________________ 227 जैन व्याख्या साहित्य में द्रव्य की अवधारणा का विकास किस प्रकार हुआ ? इस ओर दृष्टिपात करना भी आवश्यक है। जैनदर्शन में द्रव्य की अवधारणा का विकास -(क्यों और कैसे) जैनागमों में विश्व व्यवस्था के आधारभूत घटकों के लिए अस्तिकाय, तत्त्व और द्रव्य शब्दों का प्रयोग उपलब्ध होता है। स्थानांगसूत्र में द्रव्य और अस्तिकाय शब्द को प्रयुक्त किया गया है। इस सूत्र के दूसरे शतक84 में द्रव्य के परिणत और परिणत के रूप में दो प्रकार किये हैं। पांचवे शतक85 में धर्म, अधर्म, आकाश, जीव और पुद्गल इन पांच अस्तिकायों का द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण की अपेक्षा से विस्तार से विवेचन उपलब्ध है, जबकि समवायांगसूत्र में पांच अस्तिकाय का नाम निर्देश करके संक्षिप्त विवेचन किया गया है। ऋषिभासितसूत्र87 में भी अस्तिकाय का उल्लेख मिलता है। संवादशैली में गुंफित भगवतीसूत्र में द्रव्य और अस्तिकाय इन दोनों की मीमांसा विस्तार से की गई है। प्रथम शतक के नौवे उद्देशक के सात सूत्रों में भारहीन और भारयुक्त गुण की अपेक्षा से द्रव्य की चर्चा की गई है।88 इसी सूत्र के द्वितीय शतक के दसवें उद्देशक में पंचास्तिकाय का सांगोपांग विवेचन द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण की दृष्टि से किया गया है।589 इनके अतिरिक्त भी भगवतीसूत्र90 के अनेक स्थलों पर षड्द्रव्य विषयक विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है। 584 स्थानांगसूत्र - 2/1/138 585 स्थानांगसूत्र - 3/3/169 586 समवायांगसूत्र - 5/8 587 ऋषिभाषितसूत्र, 23 वां पार्श्वनायक अध्ययन 588 भगवइ - 1/400, 406 589 भगवइ - 2/124, 129 590 भगवइ - 7/213, 216, 218, 11/103, 13/55-60 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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