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________________ 218 अट्टे 65 सामायिक की क्रिया व्यवहारदृष्टि से सामायिक है। निश्चय दृष्टि से आत्मा को समभाव में तल्लीन रखना अथवा समतारूप आत्म की परिणति ही सामायिक है। निश्चय नय जीव के बाह्य क्रियाकलापों की उपेक्षा करके निर्मल आन्तरिक परिणति को ही अपने दृष्टिकोण में लेता है। बाह्य क्रिया सामायिक रूप न होने पर भी यदि अन्तर की परिणति समतारस में मग्न है तो निश्चयनय की दृष्टि से वह सामायिक है। जैसे– बाह्यरूप से गुणसागर लग्न मंडप में बैठे थे, पृथ्वीचंद्र राजा राजसभा में सिंहासन पर सुशोभित हो रहे थे, भरत चक्रवर्ती छह खण्ड के स्वामिपणे से अभिभूत थे। परन्तु उस समय में इन सबकी अन्तर की परिणति कर्तृत्व-भोक्तृत्व-ममत्व बुद्धि से रहित स्वस्वरूप में रमण कर रही थी। यह आत्म द्रव्य की शुद्ध परिणति ही निश्चयनय की दृष्टि से सामायिक है। इस प्रकार समाधि को नंदनवन मानना, 'एक ही आत्मा है' ऐसा कहना, लग्नक्रिया को सामायिक कहना इत्यादि लोक व्यवहार की दृष्टि से उचित नहीं है। ये सभी लोकातिक्रान्त अर्थ है जो निश्चयनय के विषय है।566 व्यवहारनय: ___जो भेदग्राही है, वस्तु के उत्कट पर्याय को प्रधानता देता है और कार्य और कारण (निमित्त) की अभिन्नता को स्वीकार करता है, वह व्यवहारनय है।67 व्यवहारनय, संग्रहित व्यक्तियों में भेद करता है। जैसे द्रव्य अनेक हैं, जीव अनेक हैं, इत्यादि ।68 व्यवहारनय लोकाभिभूतग्राही होने से बाह्यदृष्टि से प्रत्येक वस्तु का विश्लेषण करता है। जैसे- यह जड़ है, यह चेतन है, यह देव है, यह मनुष्य है, 565 भगवतीसूत्र, 1/9 566 इम जे जे रीतिं लोकातिक्रान्त अर्थ पामिइं ................ द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा.8/22 567 जेह भेद छई विगतिनो रे. ................ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 8/23 568 जेह व्यक्तिनो भेद देखाडिइ,"अनेकानि द्रव्याणि, अनेके जीवा' ... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा.8/23 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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