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________________ 215 परमाणुओं के स्कन्ध से निर्मित है। परमाणु भिन्न-भिन्न वर्ण वाले होते हैं। अतः भंवरे का शरीर भी अनंत परमाणुओं से निर्मित होने से उसमें कृष्णादि पांचों ही वर्गों की संभावना हो सकती है। इस प्रकार युक्तियों से सिद्ध अर्थ को तात्त्विक अर्थ कहा जाता है।556 लोक व्यवहार में रूढ़ अर्थ को विषय बनानेवाले नय को व्यवहार नय कहा जाता है। जैसे भंवरा काला है। यहां पाँचों वर्ण के होने पर भी कृष्णवर्ण की अधिकता के कारण लोक व्यवहार में 'भंवरा काला है ऐसा प्रसिद्ध है।557 उपरोक्त जिनभद्रकृत निश्चयनय के लक्षण के विरोध में दिगम्बर आचार्यों ने यह प्रश्न उठाया है कि यदि तात्त्विक अर्थग्राही निश्चयनय है तो फिर निश्चयनय और प्रमाण की परिभाषा में कोई अन्तर न रहकर दोनों एक हो जायेंगे। इसका कारण यह है कि प्रमाण भी संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय से रहित यथार्थ स्वपरव्यवसायी ज्ञान होने से तत्त्वार्थग्राही है। उपाध्याय यशोविजयजी इस प्रश्न का सूक्ष्मदृष्टि से समाधान करते हुए कहते हैं – दिगम्बराचार्यों की उपरोक्त बात पूर्णतः सत्य नहीं है। निश्चयनय और प्रमाण दोनों ही तत्त्वार्थग्राही है। फिर भी दोनों में अन्तर है। निश्चयनय 'नय' होने से एकदेशतत्त्वार्थग्राही है, जबकि प्रमाण 'प्रमाण' होने से सकलादेशतत्त्वार्थग्राही है।558 __ यशोविजयजी ने इसी बात को और अधिक स्पष्ट किया है। जैसे - नैयायिक और वैशेषिक दर्शनकारों ने प्रत्यक्षज्ञान के दो भेद किये हैं। 1. निर्विकल्पक और 2. सविकल्पक। निर्विकल्पक में विकल्पों का अभाव होने से 'यह कुछ है' मात्र ऐसा ही ज्ञान होने के कारण कोई भेद नहीं होता है। परन्तु सविकल्पकज्ञान में विकल्पों के कारण प्रकारता, विशेष्यता, संसर्गता आदि भी होते हैं।559 इस प्रकार सविकल्पकज्ञान 556 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-1, लेखक-धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. 351 557 वही 558 यद्यपि प्रमाणे तत्त्वार्थग्राही छइ, तथापी प्रमाण सकलतत्त्वार्थग्राही, ..................द्रव्यगुणपर्यायनोरास 559 जिम सविकल्पज्ञाननिष्ठ प्रकारतादिक अन्यवादी भिन्न मानई छइ ......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का ख्बा, गा.21 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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