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________________ 213 व्यवहारनय की मुख्यवृत्ति होती है तब निश्चयनय की उपचारवृत्ति भी अवश्य होती है। जैसे- निश्चयनय के अनुसार जीव कर्म से आबद्ध और अस्पृष्ट है अर्थात् निरंजन, निराकार, सिद्ध और बुद्ध है। परन्तु व्यवहार नय की दृष्टि से जीव कर्म से बद्ध और स्पृष्ट है अर्थात् सदेही, स्त्री-पुरूष, देव तिर्यंच, सुखी, दुखी इत्यादि है।50 इसका आशय यह है कि निश्चयदृष्टि मुख्य रूप जीव को निरंजन निराकार आदि के रूप में स्वीकार करती है तो उपचार रूप से (गौणता) जीव को सदेही आदि के रूप में भी स्वीकार करती है। इसी प्रकार व्यवहारदृष्टि प्रधान रूप से जीव को सदेही आदि के रूप में स्वीकृत करती है तो गौण रूप से (उपचार) जीव को निरंजन, निराकार आदि भी मानती है। प्रत्येक नय मुख्यवृत्ति और उपचारवृत्ति से ही विषय का प्रतिपादन करता है। इस दृष्टि से व्यवहारनय में उपचार होने के कारण व्यवहारनय के सद्भूत व्यवहार आदि उपनय होते हैं और निश्चयनय में उपचार नहीं होने के कारण उपनय नहीं होते हैं, इत्यादि कथन मिथ्या और अनुचित हैं।551 यह शास्त्र सिद्ध बात है कि जहां एक नय की मुख्यता होती है, वहां अन्य सभी नय गौण (उपचरित) होते हैं। "स्यादस्त्येव" घट पटादि सभी वस्तुएं कथंचिद् अस्ति है। इस प्रकार के नय वाक्य में 'अस्तित्व' को प्रतिपादित करने वाले निश्चयनय की विवक्षा है तो कालादि आठ द्वारों के द्वारा अस्तित्व के साथ सम्बन्ध रखनेवाले अन्य सभी नास्तित्व धर्मों को भी अभेदवृत्ति से उपचार करके लिया गया है। जिस प्रकार अस्तित्ववादी धर्मों को मुख्यता से निरूपण किया गया है उसी प्रकार के नास्तित्ववादी धर्मों को भी उपचार से निरूपण किया गया है। ऐसा होने पर ही नयवाक्य, नयरूप में होते हुए सकलादेश (अस्तित्व, नास्तित्व) रूप बनकर प्रमाणरूप बनता है।552 क्योंकि नय 550 जीवे कम्मं बद्धं पुद्धं चेदी ववहारणयभणिदे। सुद्धणस्स दु जीवे अबद्धपुद्धं हवइ कम्मं ।। ....... समयसार, गा. 141 551 व्यवहारइ निश्चय थकी रे, स्यो उपचार विशेष ? मुख्यवृत्ति जो ऐकनी रे, तो उपचारी शेष रे द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 8/20 552 अत एव "स्यादस्त्येव" ए नय वाक्यइं अस्तित्वग्राहक .................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, का टब्बा, गा.8/20 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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