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सम्मतितर्क, प्रमाणनयतत्त्वालोक, विशेषावश्यकभाष्य, तत्त्वार्थसूत्र आदि को आधार बनाया है। स्वमत मंडन और परमत खंडन के लिए नय, निक्षेप न्याय की प्राचीन शैली और नव्यन्याय की आधुनिक शैली का प्रचुर उपयोग किया गया है। प्रस्तुत रास विविध दर्शनों के पदार्थ के स्वरूप और उदाहरणों से भी सभर है। ___उपाध्याय यशोविजयजी की प्रस्तुत रासात्मक कृति भाषा की दृष्टि से सरल होते हुए भी विषय वस्तु की दृष्टि से कठिन भी है। अतः स्वयं यशोविजयजी ने गहन पदार्थों के रहस्यार्थ को उद्घाटित करने के लिए इस पर स्वोपज्ञ टबा की रचना भी की है। इस ग्रन्थ पर दिगम्बर विद्वान भोजसागर कवि ने 'द्रव्यानुयोग तर्कणा' नामक संस्कृत टीका की रचना भी की है।
इस प्रकार प्रस्तुत ग्रन्थ की भिन्न-भिन्न ढालों में द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकनय की दृष्टि से द्रव्य-गुण और पर्याय का सुन्दर निरूपण है।
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