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ढालने का अनुपम प्रयास किया गया है। इस ग्रन्थ के रचनाकाल के विषय में 'उपाध्याय यशोविजयजी स्वाध्याय स्मृति ग्रन्थ में दलसुख मालवणिया ने लिखा है कि इस ग्रन्थ की प्राचीनतम हस्तप्रति वि.सं. 1729 (ई. सन् 1673) की उपलब्ध हुई है। इस दृष्टि से वि.सं. 1729 के पूर्व ही यशोविजयजी ने इस ग्रन्थ की रचना की होगी। धीरजभाई डाह्यालाल के अनुसार वि.सं. 1709/1710 के आसपास 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' की रचना हुई है।
'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' 17 ढालों और 284 दोहे / गाथाओं में वर्णित है। इसका मुख्य विवेच्य विषय द्रव्य, गुण, और पर्याय हैं। इसमें त्रिपदी का रहस्य, षड्द्रव्यों के स्वरूप, लक्षण आदि का तथा उनके सामान्य गुण, विशेष गुण, सामान्य स्वभाव, विशेष स्वभाव एवं व्यंजनपर्याय, अर्थपर्याय आदि का विस्तार से वर्णन है। द्रव्य से गुण और पर्याय कथंचित् भिन्न है, कथंचित् अभिन्न है अर्थात् भिन्नाभिन्न हैं। इस बात को अनेक युक्तियों और तर्कसंगत दलीलों से सिद्ध किया गया है। द्रव्य-गुण-पर्याय के पारस्परिक संबन्ध को अनेकांतवाद, स्याद्वाद, सप्तभंगी, नयवाद के आधार पर समझाया गया है।
इसमें नयों की चर्चा के प्रसंग में दिगम्बर आचार्य देवसेनकृत 'नयचक्र' ग्रन्थ की समीचीन समीक्षा की गई है। इसमें देवसेन आचार्य के द्वारा नय, उपनय और अध्यात्म नय के विभाजन के अनुचित अंशों की तर्कयुक्तियों से समीक्षा की गई है।
अन्त में आत्मस्वरूप को प्रगट करने के लिए द्रव्यानुयोग के ग्रन्थों का अध्ययन, चिंतन, मनन, परिशीलन ही मुख्य मार्ग है ऐसा बलपूर्वक निर्देश किया है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि प्रस्तुत ग्रन्थ में यशोविजयजी ने द्रव्य-गुण-पर्याय के विशद विवेचन के साथ-साथ सर्वनयात्मक, प्रमाण पुरस्कृत श्वेताम्बर जैन मत मान्य सिद्धान्तों के मंडन का पूर्णरूप से प्रयास किया है। इसके लिए श्वेताम्बर आगम ग्रन्थों, आगमिक व्याख्या ग्रन्थों, पूर्वाचार्यों द्वारा रचित
। उपाध्याय यशोविजय स्मृति ग्रन्थ, पृ. 284 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-1, पृ. 26
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