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________________ 1. नय के दो प्रकार हैं - द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक 2. द्रव्यार्थिक नय के नैगम आदि तीन प्रकार हैं । 3. पर्यायार्थिकनय के ऋजुसूत्र आदि चार प्रकार हैं । 534 इस प्रकार से दिगम्बराचार्य देवसेन ने द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय के ही उत्तरभेद के साथ अलग से द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकनय को मिलाकर जो विभक्त का विभाग किया है, वह किसी भी प्रकार से शोभनीय नहीं है । जैन शास्त्रों में विभक्त का विभाग कहीं पर भी उपलब्ध नहीं होता है । भिन्न प्रयोजन स्वपक्ष की पुष्टि के लिए दिगम्बर देवसेन या उनके समर्थक ऐसा कहें कि जिस प्रकार संवर, निर्जरा, मोक्ष जीव के ही स्वरूप होने से जीव तत्त्व में तथा पुण्य, पाप, आश्रव और बंध पुद्गल स्वरूप होने से अजीव तत्त्व में अन्तर्भावित हो जाने पर भी जीव और अजीव के साथ पुण्य आदि सात तत्त्वों को मिलाकर नौ तत्त्व का उपदेश किया गया है, उसी प्रकार हमने द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय में समाहित सप्त नयों को अलग करके नौ नयों का प्रतिपादन किया है। अतः नौ नयों के प्रतिपादन में कोई दोष दृष्टिगोचर नहीं होता है | 35 ,535 इसका सटीक उत्तर देते हुए यशोविजयजी कहते हैं नौ तत्त्वों के भिन्न-भिन्न तत्त्वव्यवहार में भिन्न प्रयोजन है । परन्तु दो नयों के नौ नय करने में ऐसा कोई विशेष भिन्न प्रयोजन दृष्टिगत नहीं होता है। जीव और अजीव में समाहित पुण्य आदि सात तत्त्वों को भिन्न तत्त्व के रूप में प्रतिपादन करने में मूल उद्देश्य भिन्न-भिन्न तत्त्वों के भिन्न-भिन्न विशेष प्रयोजनों को समझाना है । किन्तु 'इतर व्यावृत्ति' अर्थात् एक तत्त्व से दूसरे तत्त्व में क्या अन्तर है? किस प्रकार भिन्न है? 534 इम करतां 9 नय देखाइतां, विभक्ततो विभाग थाई 535 हिवइ कोई कहस्यइ, जे जीवाजीवौ तत्त्वम् Jain Education International 207 वही, For Personal & Private Use Only - द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टबा, गा. 8/17 www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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