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________________ वसति के उदाहरण, प्रदेश के उदाहरण से हो जाता है। समय पर होने वाली वर्षा को 'सोना बरसता है, यह रास्ता इन्दौर जाता है, इत्यादि वाक्य प्रयोग उपचारग्राही नैगमनय के ही उदाहरण हैं। इस प्रकार नैगमनय संग्रह और व्यवहार नय से भिन्न विषयक होने के कारण ही भिन्न नय है |530 विभक्त का विभाग दिगम्बरों की नौ नयों की कल्पना में विभक्त का विभाग' नामक दोष लगता है । 31 इसका अभिप्राय यह है कि मूलवस्तु को उत्तरभेदों में विभाजित करके मूलवस्तु का भी एक विभाग करना । जैसे मनुष्यों के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ऐसे चार भेद करके मनुष्य को भी पाँचवे भेद के रूप में स्वीकारना विभक्त का विभाग नामक दोष है |532 यदि विभक्त का विभाग होता तो जैन शास्त्रों में निम्नलिखित रूप से पाठ होने चाहिए 1. संसारी, सिद्ध और जीव, ऐसे जीव के तीन भेद हैं । 2. पृथ्वी, अप्, तेउ, वाउ, वनस्पति, त्रस और संसारी ऐसे संसारी जीव के 7 भेद हैं । 3. जिन सिद्धादि 15 +1 सिद्ध ऐसे सिद्ध के 16 भेद हैं । 533 — परन्तु इस प्रकार के पाठ आगम में कहीं पर भी उपलब्ध नहीं होते हैं । जैन शास्त्रों में निम्नरूप से पाठ मिलते हैं : 1. जीव दो प्रकार के हैं संसारी और सिद्ध 2. संसारी जीव के पृथ्वीकायादि छह प्रकार हैं। 3. सिद्ध जीवों के जिनसिद्ध आदि 15 भेद हैं। 530 संग्रह नई व्यवहारथी रे, नैगम किहांइक भिन्न तिण ते अलगो तेहथी रे, ए तो दोई अभिन्न रे, 531 'इम करतां ओ पामीइ रे 532 - Jain Education International द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-1, लेखक - धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. 336 533 इम कहिउं जोइइ, पणि "नवनया" 206 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 8 / 15 वही, गा. 8 / 16 For Personal & Private Use Only • द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 8/16 www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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