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'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में यशोविजयजी एक ओर देवसेन कृत नयों के विभाजन और उनके प्रकारों की गंभीर समीक्षा करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे देवसेन के इस वर्गीकरण को आगम सम्मत न दिखाकर अपनी आगमिक निष्ठा को भी प्रकट करते हैं। आगे इसकी विस्तृत चर्चा करेंगे। .
यशोविजयजी द्वारा देवसेन कृत नय विभागों की समीक्षा :
दिगम्बर परंपरा के विद्वान देवेसेन कृत 'नयचक्र' और आलापपद्धति में तर्कशास्त्र की दृष्टि से नौ नयों और तीन उपनयों तथा आध्यात्मदृष्टि से निश्चयनय और व्यवहारनय की चर्चा जिस प्रकार की गई है, उसी प्रकार की यथावत् चर्चा उपाध्याय यशोविजयजी ने अपनी कृति 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' के पांचवी, छठी, सातवीं और आठवीं ढाल में की है। आठवीं ढाल में अध्यात्म नयों को समझाने के पश्चात् देवसेन कृत नयों के इन प्रकारों की सुन्दर तार्किक शैली से समीक्षा भी की है। यशोविजयजी का दृष्टिकोण प्रारम्भ से ही उदार और समन्वयात्मक रहा। अतः इन्होंने देवसेन के नय प्रकारों का विरोध या खण्डन नहीं किया है, अपितु उनके सत्यांश और असत्यांश को जानने के लिए उनकी समीक्षा की है।
श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं का मूलभूत सिद्धान्त एक और समान होने से आचार्य देवसेन कृत विभागों में स्थूल रूप से कोई विषयभेद नहीं है। किन्तु खेद इस बात का है कि उन्होंने शास्त्र प्रणाली का त्याग करके भिन्न परिभाषाओं द्वारा नवीन रूप से नयों का प्रतिपादन किया।18 जिस शैली से पूर्वाचार्यों ने आगमों
और अन्य ग्रन्थों में नयों को उपदर्शित किया, उस शैली का बिना किसी प्रयोजन से त्याग करके स्वकल्पित भेद और प्रभेदों की जो चर्चा की है, वह यशोविजयजी की दृष्टि में अनुचित है।
518 विषय भेद यद्यपि नहीं रे, इहां अहमराई स्थूल
उल्टी परिभाषा इसी रे, तो पणि दाझइ मूल रे ..
...... द्रव्यगुणपयोयनोरास, गा. 8/8
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