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________________ 199 मिलते हैं। वहाँ नयों के प्रभेदों की चर्चा नहीं है। सर्वप्रथम तत्त्वार्थसूत्र13, षटखण्डागम में नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्द ऐसे पांच नयों का उल्लेख मिलता है। इसी आधार पर कालान्तर में श्वेताम्बर परम्परा के अनुयोगद्वारसूत्र14 में तथा दिगम्बर परम्परा के सर्वार्थसिद्धि15 मान्य पाठ में सात नयों का उल्लेख है। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने नैगमनय को अस्वीकार करके छह नयों की चर्चा की है। फिर भी सामान्यतया कालान्तर में भी ये सात नय ही जैन दार्शनिकों में प्रसिद्ध रहे। दूसरी ओर आध्यात्मिक दृष्टि से श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्परा में निश्चय और व्यवहार, ऐसे दो नय ही प्रसिद्ध रहे। किन्तु कालान्तर में निश्चय के शुद्धनिश्चय और अशुद्धनिश्चय और व्यवहार ऐसे तीन नय माने गये। समयसार16 में इन्हीं तीन नयों के आधार पर आत्मा आदि की चर्चा हुई है। श्वेताम्बर परंपरा में भगवतीसूत्र में निश्चयनय और व्यवहारनय को आधार बनाकर तत्त्व स्वरूप का विवेचन किया गया है। किन्तु निश्चय और व्यवहार तथा द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयों के विस्तृत भेद-प्रभेदों की चर्चा पन्द्रहवीं शताब्दी के बाद ही देखी गई है। दिगम्बर परंपरा में देवसेन ने ही मूल सात नयों में द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक को जोड़कर नौ नयों की चर्चा की। पश्चात् द्रव्यार्थिक के दस और पर्यायार्थिक के छह भेद भी किये हैं। नयों की यह गंभीर चर्चा दिगम्बर परंपरा में ही अधिक प्रचलित है। श्वेताम्बर परम्परा में यशोविजयजी ही ऐसे प्रथम व्यक्ति हैं, जिन्होंने इन नयों के भेद-प्रभेदों की विस्तृत चर्चा की है। यही नहीं उन्होंने देवसेन कृत नयों के इस वर्गीकरण की समीचीन समीक्षा भी की है। 513 नैगमसंग्रहव्यवहारर्जसूत्रशब्दा नयाः तत्त्वार्थसूत्र, 1/34 514 सत्तमूल नया पन्नता, तं जहा नैगमे ........ अनुयोगद्वार, पृ. 467 515 नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्द समभिरूद्वैवंभूता नयाः .......... सर्वार्थसिद्धि, 1/33 516 ववहारोऽभूदत्थो मूदव्यो देसिदो दु सुद्धणओ ................ समयसार, गा. 11 517 गोयमा एत्थ दो नया भवंति, तं जहा नेच्छाइयनए य वावाहारियनए य ........... व्याख्याप्रज्ञप्ति, भाग-2, पृ.814 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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