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विषय है।501 यशोविजयजी ने भी सोपाधिक गुण-गुणी में भेद करनेवाले नय को उपचरित सद्भूत व्यवहारनय कहा है। जैसे कि जीव का मतिज्ञान। 02 इस उदाहरण में जीव और मतिज्ञान में षष्ठी विभक्ति के द्वारा भेद किया गया है। मतिज्ञान जीव का गुण (सद्भूत गुण) होते हुए भी क्षयोपशमिक जन्य है, अर्थात् कर्मोपाधि सहित है। अतः जीव और जीव के कर्मोपाधिसहित निजगुण मतिज्ञान में भेद व्यवहार करना प्रस्तुत नय का विषय है। 2. अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय :___इस नय में कर्मरूप उपाधि की अपेक्षा नहीं होने से अनुपचरित है। प्रस्तुत नय उपाधि रहित गुण और गुणी में भेद व्यवहार करता है।503 यशोविजयजी ने भी निरूपाधिक अर्थात् क्षायिक गुण और गुणी में भेद करनेवाले नय को अनुपचरित सद्भूत व्यवहार नय कहा है। जैसे कि जीव का केवलज्ञान । 04 यहां षष्ठी विभक्ति द्वारा जीव और उसके क्षायिक गुण केवलज्ञान में भेद दर्शाया गया है। केवलज्ञान जीव का कर्मोपाधिरहित सद्भूतगुण है। इस प्रकार ‘जीव का केवलज्ञान' यह कथन अनुपरित सद्भूत व्यवहार नय का विषय है।
2. असद्भूत व्यवहार नय :
जो व्यवहारनय भिन्न वस्तुओं में भेद करता है, वह असद्भूत व्यवहारनय है।505 उपाध्याय यशोविजयजी ने पर-द्रव्याश्रित गुण और गुणी में भेद व्यवहार करने वाले नय को असद्भूत व्यवहारनय कहा है।506 पर से तात्पर्य जीव से भिन्न द्रव्य से है।
501 तत्र सोपाधि गुणगुणि भेद विषय उपचरित सद्भूत व्यवहारो ........... आलापपद्धति, सूत्र 221 502 सोपाधिक गुण-गुणी भेदइ रे, जिअनी मति उपचार रे ............. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गात्र 8/4 503 निरूपाधि गुण गुणि भेद विषयोऽनुपचरित सद्भूत व्यवहारो ....... आलापपद्धति, सू. 222 504 निरूपाधिक गुण-गुणि भेदई रे, अनुपचरित सद्भूत .............. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 8/5 505 भिन्नवस्तु विषयोऽसद्भूत व्यवहारः ......
. आलापपद्धति, सू. 219 506 दोइ भेद व्यवहारनाजी, सद्भूतासद्भूतः ........................ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 8/3
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