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________________ 194 निश्चयनय में अभेद की प्रधानता रहती है तो व्यवहारनय में भेद की प्रधानता रहती है। व्यवहारनय के भी दो प्रकार हैं195 - 1. सद्भूत व्यवहारनय और 2. असद्भूत व्यवहारनय। 1. सद्भूत व्यवहारनय वस्तु के वास्तविक गुण या धर्म को सद्भूत कहा जाता है और उसमें प्रवृत्ति करना व्यवहार है।196 अभिप्राय यह है कि सद्भूत व्यवहार में वस्तु के साधारण गुण अविवक्षित रहते हैं।197 अनागारधर्मामृत 98 में अभेद रूप गुण-गुणी में भेद करनेवाले नय को सद्भूत व्यवहारनय कहा है। आलापपद्धति 99 के कर्ता देवसेन के अनुसार जो नय एक ही (अभिन्न) वस्तु में भेद व्यवहार करता है, वह सद्भूत व्यवहारनय है। उपाध्याय यशोविजयजी ने लगभग ऐसी ही परिभाषा दी है। उनके अनुसार एकविषय अर्थात् एक द्रव्याश्रित गुणों और गुणी में भेद करना सद्भूत व्यवहारनय है।500 'आलापपद्धति' और 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' दोनों में सद्भूत व्यवहार नय के मुख्य दो भेद किये गये हैं - 1.उपचरित सद्भूत व्यवहारनय और 2. अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय। 1. उपचरित सद्भूत व्यवहारनय : जहां कर्मजन्य उपाधि की सापेक्षता होती है, वहां उपचार होता है। कर्मरूप उपाधि सहित गुण और गुणी में भेद व्यवहार करना उपचरित सदभूत व्यवहारनय का 495 व्यवहारो द्विविधः सद्भूत आलापपद्धति, सू. 218 496 सद्भूतसद्गुण इति व्यवहारस्तत्प्रवृति मात्रात्वात्। ................... पंचाध्यायी, श्लो. 1/525 497 अथ निदानं च यथा सद्साधारणगुणो विवक्ष्यः स्यात् । ........... वही, श्लोक 1/526 498 गुणगुणिनोरभिदायमपि सद्भूतो विपर्ययादितरः। ......... अनगारधर्मामृत, 1/104 49 तत्रैक वस्तु विषयः सद्भूत व्यवहारः .. .............. आलापपद्धति, सूत्र 219 500 दोइ भेद व्यवहारना जी ............ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 8/3 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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