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का आरोपन जीवद्रव्य में किया जाता है। यही व्यवहारनय है।184 निश्चयनय अभेद और नियतस्वलक्षण के आधार पर अर्थात् अनुपचार के आधार पर वस्तु का निश्चय करता है।485 निश्चयनय के अनुसार काम क्रोधादि विकार आत्मा के नहीं हैं। विकारभाव पुद्गल के निमित्त से उत्पन्न होते हैं, इसलिए वे पौद्गलिक हैं।
इस प्रकार द्रव्य के आधार पर वस्तुस्वरूप को कथन करनेवाली दृष्टि निश्चयनय है और पर्याय के आधार वस्तुस्वरूप को निश्चित करनेवाली दृष्टि व्यवहारनय है।
"निश्चयवस्तु द्रव्याश्रितत्वात् ...... | व्यवहारनयः किल पर्यायाश्रितत्वात्-486
संक्षेप में जिस वस्तु की जैसी परिणति है, उसे उस रूप में कथन करना निश्चयनय है।87 इसलिए इस नय को शुद्ध नय भी कहा जाता है188 और वस्तु की परिणति को अन्य रूप से कथन करना व्यवहारनय है।
आत्मा के गुण दो प्रकार के होते हैं – निरूपाधिक गुण और सोपाधिक गुण। कर्मोपाधि से संपूर्ण रूप से दूर होने से तथा क्षायिकभाव जन्य स्वभाविक गुण निरूपाधिक गुण है। कर्मोपाधि के रहने पर क्षयोपशम जन्य गुण सोपाधिक गुण है।189 इन दो प्रकार के गुणों के साथ आत्मा (गुणी) का अभेद कथन करनेवाला निश्चयनय भी दो प्रकार का है। शुद्ध निश्चयनय और अशुद्ध निश्चयनय ।490
484 जोधेहिं करे जुद्धे रायण कदं ति जंपदे लोगो तह ववहारेण कदं णाणावरणदि जीवेण
समयसार, गा. 106 485 निश्चयनयोऽभेदविषयो, व्यवहारो भेद विषय
आलापपद्धति, सू. 214 486 समयसार, गा. 56 पर आत्मख्याति टीका 487 जैनदर्शन में नय की अवधारणा, लेखक-डॉ. धर्मचन्द्र जैन, पृ. 21 488 ण वि होदि अप्पमतो न पमणो जाणओ दु भावो एवं भणंति सुद्ध णओ जो सो उ सो चेव
समयसार, गा. 6 489 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, लेखक-धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. .......... 490 अ) शुद्धाशुद्धनिश्चयो
..... आलापपद्धति, सूत्र 203 ब) निश्चय द्विविध तिहां कहियो रे शुद्ध और अशुद्ध प्रकार रे ....... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 8/1 स) निश्चयो द्विविधस्तत्र शुद्धाशुद्ध विभेदतः
... द्रव्यानुयोगतर्कणा. श्लोक 8/1
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