________________
189
1. स्वजाति उपचरित असद्भूत व्यवहार उपनय :
___ पुत्र आदि के प्रति तीव्र ममत्व बुद्धि के कारण 'पुत्रादि मैं ही हूं' या 'पुत्रादि मेरे हैं' इस प्रकार तादात्म्य करना इस उपनय का विषय है।76 पुत्रादि उपचरित पदार्थ हैं। पुत्रादि और आत्मा दोनों ही भिन्न जीवद्रव्य हैं। परन्तु आत्मा का सम्बन्ध शरीर से और शरीर (शारीरिकवर्ग) का सम्बन्ध पुत्रादि के साथ जोड़कर यहां उपचार पर उपचार किया गया है अर्थात् एक उपचार से दूसरा उपचार किया गया है। आत्मा भी चेतन है और पुत्र भी चेतन है। इस प्रकार दोनों की आत्मपर्याय होने से स्वजातीय हैं। अतः 'पुत्रादि मेरे हैं इस प्रकार कहने में उपचार में उपचार किया गया है।
2. विजाति उपचरित असद्भूत व्यवहार उपनय :
'वस्त्रादि मेरे हैं। इस प्रकार कहना विजाति उपचरित असद्भूत व्यवहार उपनय है। वस्त्रादि सभी पदार्थ पुद्गलास्तिकाय की पर्याये होने पर भी तन्तु निर्मित पदार्थ विशेष को वस्त्र, मिट्टी से निर्मित पदार्थ विशेष को घट नाम देकर ऐसी कल्पना (उपचार) की जाती है।78 वस्त्रादि पौद्गलिक पदार्थ होने से आत्मद्रव्य के लिए विजातीय पदार्थ है। इस प्रकार अचेतन पदार्थों में ममत्व बुद्धि का उपचार करना विजाति असद्भूत व्यवहार उपनय है।
3. स्वजाति-विजाति उपचरित असद्भूत व्यवहार उपनय :
476 अ) तेह स्वजाति जाणो रे हूं पुत्रादिक ...
....... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 7/7 ब) स्वजाति-उपचरित-असद्भूत व्यवहारे यथा पुत्र दारादिः ममः ........ आलापपद्धति, सूत्र 89 477 अ) विजाति उपचरित असदभूत व्यवहारो यथा वस्त्र .......... .... वही, सूत्र 90 ब) विजातिथी ते जाणो रे वस्त्रादिक मुझ
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 7/18 478 इहां-वस्त्रादिक पुद्गल पर्याय नामादि भेद कल्पित छइं .............. वही. गा. 7/18
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org