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________________ 3. स्वजाति विजाति असद्भूतव्यवहार उपनय : अन्य किसी के प्रसिद्ध धर्म का आरोपण जब स्वजातीय और विजातीय दोनों में किया जाता है तो वह स्वजाति विजाति उपनय है। जैसे कि ज्ञान जीवाजीव विषयक है । 472 उपाध्याय यशोविजयजी ने असद्भूत व्यवहार उपनय के इस तीसरे भेद का स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है मति आदि किसी भी ज्ञान द्वारा जीव और अजीव के स्वरूप को जाना जाता है या उसका ज्ञान किया जाता है । जब मतिज्ञान के द्वारा जीव के द्वारा जीव के स्वरूप का ज्ञान होता है तो यहां ज्ञान जीव की स्वजाति है । क्योंकि जीव विषयक ज्ञान जीव का अपना गुण है । परन्तु जब अजीव विषयक ज्ञान किया जाता है तो वह ज्ञान की विजाति है । अजीव ज्ञान की विजाति है, क्योंकि ज्ञान अजीव का गुण नहीं है । — इस प्रकार जीव और अजीव दोनों के साथ ज्ञान का विषय-विषयी भाव रूप कथन एक उपचारित सम्बन्ध होने से स्वजाति - विजाति असद्भूत व्यवहार उपनय है 1473 उपचरित असद्भूत व्यवहार उपनय : जो उपचार में उपचार करता है, वह उपचरित असद्भूत व्यवहार उपनय है । 474 उसके तीन भेद हैं । 475 188 472 अ) स्वजाति-विजाति असद्भूतव्यवहारो यथा जीवे - अजीवे ज्ञानमिति कथनं ब) असद्भूत दोउ भांति, जीव- अजीवनई 473 ए 2 नो विषयविषयिभाव नामदं उपचरित संबंध छइ 474 ' उपचरितासद्भूत करिइं उपचारो जेह अने उपचार थी रे 475 उपचरित असद्भूत व्यवहारः त्रेधा Jain Education International आलापपद्धति, सू. 87 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 7/5 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, टब्बा, गा. 7/15 For Personal & Private Use Only वही, गा. 7/6 आलापपद्धति, सूत्र - 88 www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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