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अप्रदेशी है, परन्तु अन्य परमाणुओं से मिलकर बहुप्रदेशी कहलाने की क्षमता रखता है। परमाणु में व्यक्ति रूप से बहुप्रदेशित्व नहीं परन्तु शक्तिरूप से बहुप्रदेशित्व है।169 परमाणु और बहुप्रदेशी स्कन्ध दोनों की पुद्गलास्तिकाय द्रव्य की पर्याये हैं अर्थात् स्वजातीय पर्यायें है। परमाणु में बहुप्रदेशित्व का आरोप करना स्वजातीय असद्भूत व्यवहार उपनय है।
2. विजाति असद्भूत व्यवहार उपनय :
विवक्षित किसी द्रव्य के गुण या पर्याय में अन्य द्रव्य के गुण या पर्याय का समारोप करना विजातीय असद्भूत व्यवहार उपनय है। उदाहरण के लिए- मतिज्ञान मूर्त है,470 ऐसा कहना।
यशोविजयजी विजाति असद्भूत व्यवहार उपनय को स्पष्ट करते हुए कहा कि मतिज्ञान की मूर्तता में मूर्तत्व पुद्गलास्तिकाय का गुण है और मतिज्ञान तो आत्मा का गुण होने से अमूर्त है। परन्तु यहां अमूर्त मतिज्ञान में मूर्त्तत्व गुण का उपचार किया गया है, क्योंकि मतिज्ञान में घटादि विषयों का बोध जो पुद्गल के आलम्बन से उत्पन्न होता है। अतः कारण में कार्य का उपचार करके मतिज्ञान को मूर्त कहा गया है। इस प्रकार आत्म गुण (मतिज्ञान) में पुद्गल का गुण (मूर्त्तत्व) का उपचार करने से यह विजाति असद्भूत व्यवहार उपनय है।71
469 बहुप्रदेशी थावानी जाति छइ, ते मटि.
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 7/13 470 अ) विजाति असद्भूत व्यवहारो यथा मूर्त मतिज्ञानं .............. आलापपद्धति, सूत्र 86 ब) तेह विजाति जाणो जिम मूरत मती ...........
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 7/14 471 मूर्त जे विषयालोक मनस्कारादिक
... वही, टब्बा, गा. 7/14
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