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9. पर्याय में गुण का उपचार :
विवक्षित एक द्रव्य की पर्याय में अन्य द्रव्य के गुण का समारोप करना पर्याय में गुण का उपचार करने रूप असद्भूत व्यवहार उपनय का नौवां भेद है। उदाहरण के लिए "शरीर मतिज्ञान रूप गुण है।' ऐसा कहना। यहाँ पर कारण में कार्य का उपचार करके शरीर को मतिज्ञानरूप कहा गया है।463 यहाँ देहात्मक पुद्गलास्तिकाय की पर्याय में मतिज्ञान रूप आत्मगुण का उपचार किया गया है।
इस प्रकार उपाध्याय यशोविजयजी ने 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में उपरोक्त असद्भूत व्यवहार उपनय के नौ भेदों की चर्चा उपचार के आधार पर की है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि आलापपद्धति4 और माइल्लधवलकृत नयचक्र65 में असद्भूत व्यवहार उपनय के उपरोक्त 'द्रव्य में द्रव्य का उपचार' आदि नौ भेदों का उल्लेख नहीं करके इन नौ भेदों का उल्लेख व्यवहारनय के ही भेदों के रूप में किया गया है। आलापपद्धति में असद्भूत व्यवहार उपनय के अन्तर्गत स्वजाति, विजाति और स्वजाति-विजाति असद्भूत व्यवहार उपनय इन तीन भेदों की चर्चा उदाहरण सहित की गई है।466 इन तीन भेदों की चर्चा उपाध्याय यशोविजयजी ने भी नौ भेदों की चर्चा के पश्चात् की है।
1. स्वजाति असद्भूत व्यवहार उपनय -
विवक्षित किसी द्रव्य की वर्तमान पर्याय में उसी द्रव्य की भावी पर्याय की योग्यता देखकर उस पर्याय का उपचार करना, स्वजाति असद्भूत व्यवहार उपनय का विषय है। जैसे कि परमाणु को बहुप्रदेशी स्कन्ध कहना। वस्तुतः परमाणु
463 पर्यायगुणोपचार : जिम पूर्वप्रयोगज अन्यथा करिइं ............. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, टब्बा. गा. 7/11 464 द्रव्ये द्रव्योपचारः ............
.................. आलापपद्धति, सूत्र 210 465 द्रव्यगुणपज्जयाणं उवयारं ताण होई तत्थेव
नयचक्र, गा. 223 466 असद्भूतव्यवहार नयः त्रेधा ........
आलापपद्धति, सूत्र 84 467 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-1, लेखक-धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. 296 4468 स्वजाति असद्भूत व्यवहारो यथा परमाणु बहुप्रदेशी इति कथनं ....... आलापपद्धति, सू. 85
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