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गुण है, क्योंकि शरीर ही गौर, कृष्णादि वर्ण का होता है। आत्मा तो वर्णादि से रहित अरूपी और अमूर्त द्रव्य है। 'जो व्यक्ति गौरवर्णी है, वही आत्मा है।' इस वाक्य के प्रयोग में गौरवर्ण को उद्देश्य करके आत्मा का विधान किया गया है। इस प्रकार गौरवर्ण रूप पुद्गल के गुण में आत्मा द्रव्य का उपचार किया गया है।
7. पर्याय में द्रव्य का उपचार : 'शरीर ही आत्मा है 461
विवक्षित अन्य द्रव्य के पर्याय में अन्य द्रव्य का उपचार करना पर्याय में द्रव्य के उपचार रूप सातवां भेद है। जैसे कि यह शरीर ही आत्मा है। प्रस्तुत उदाहरण में देह को ही आत्मा कहा गया है। देह पुद्गलास्तिकाय की एक पर्याय विशेष है। जबकि आत्मा स्वतन्त्र द्रव्य है। इस प्रकार देह को आत्मा कहकर अन्य द्रव्य की पर्याय में अन्य द्रव्य का उपचार किया गया है।
8. गुण में पर्याय का उपचार :
किसी द्रव्य के गुण में अन्य द्रव्य की पर्याय का आरोपन करना असद्भूत व्यवहार उपनय का आठवां भेद है। जैसे कि मतिज्ञान शरीर रूप है।62 प्रस्तुत उदाहरण में कारण में कार्य का उपचार करके मतिज्ञान को शरीरजन्य बताया गया है। मतिज्ञान शरीरवर्ती इन्द्रियाँ और मन के द्वारा उत्पन्न होने से मतिज्ञान शरीरजन्य है, ऐसा कहा जाता है। यहाँ पर मतिज्ञान आत्मा का गुण है। शरीर पुद्गलास्तिकाय की पर्याय है। यहाँ आत्म द्रव्य के गुण में पुद्गल द्रव्य की पर्याय रूप शरीर का आरोपण किया गया है।
461 पर्याये द्रव्योपचारः जिम कहिइं देह ते आत्मा ....
वही, गा. 7/10 वही, गा. 7/11
462 गुणेपर्यायोपचारः “मतिज्ञान ते शरीरज"
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