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नहीं होने से अश्वादि पर्याय को प्राप्त नहीं होते हैं। अतः अश्व हस्ती आदि जीव द्रव्य के ही असमान जातीय पर्याय हैं। स्कन्ध आदि पुद्गलास्तिकाय के पर्याय हैं परन्तु अनुयोगद्वारसूत्र में जीव के अश्व, हस्ती आदि पर्याय को स्कन्ध कहा गया है। इस प्रकार यहां जीवद्रव्य के पर्याय में (अश्व आदि) पुद्गल द्रव्य की पर्याय (स्कन्ध) का उपचार किया गया है।
4. द्रव्य में गुण का उपचार :
विवक्षित द्रव्य में अन्य द्रव्य के गुणों का उपचार करना एक द्रव्य में दूसरे द्रव्य के उपचार रूप चतुर्थ भेद है। जैसे कि मैं गोरा हूं। इस उदाहरण में मैं पद से तात्पर्य चैतन्यगुण वाले आत्मद्रव्य से है। आत्मा गोरे आदि वर्गों से रहित अरूपी है। गौरवर्ण शरीर का है जो पुद्गलस्वरूप है। इस प्रकार 'मैं गोरा हूं' इस वाक्य प्रयोग में आत्म द्रव्य (मैं) में पुद्गल के गुण (गौरा) का आरोप किया गया है।
5. द्रव्य में पर्याय का उपचार :
विवक्षित द्रव्य में अन्य द्रव्य की पर्याय का उपचार करना। द्रव्य में पर्याय का उपचार रूप पांचवा भेद है। जैसे –'मैं देह हूँ।459 वस्तुतः मैं आत्म द्रव्य है। देह पुद्गल द्रव्य की एक पर्याय विशेष है। यहाँ पर 'देह' में मेरेपन की बुद्धि होने से आत्मद्रव्य में पुद्गल द्रव्य की पर्याय का आरोप किया गया है।
6. गुण में द्रव्य का उपचार : यही जो गौरवर्ण रूप है, वही आत्मा है।460
ऐसे किसी विवक्षित गुण में अन्य द्रव्य का आरोप करना गुण में द्रव्य के उपचार रूप असद्भूत व्यवहार उपनय का भेद है। गौरवर्ण पुद्गलास्तिकाय द्रव्य का
45% द्रव्यइं गुण उपचार वली पर्यायनो
वही, गा. 7/9 49° द्रव्ये पर्यायोपचारः जिम हूँ देह इम वोलिई .......................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 7/9 460 गुणे द्रव्योपचारः – “ए गोर दीसई छइ ते आत्मा" ................ वही, गा. 7/9
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