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असद्भूत व्यवहार उपनय :
अन्य प्रसिद्ध गुणधर्म को अन्यत्र आरोपित करना असद्भूत व्यवहार उपनय है।451
__कोई भी द्रव्य और उसके गुण-पर्याय स्व की अपेक्षा से सद्भूत होते हैं। परन्तु अन्य द्रव्य में वे गुण-पर्याय असद्भूत होते हैं। फिर भी एक द्रव्य और उसके गुण पर्याय का अन्य द्रव्य और उनके गुण पर्याय में समारोपण करने का व्यवहार किया जाता है। ऐसे आरोपण को ही असद्भूत व्यवहार उपनय कहा जाता है।
पर द्रव्य, गुण,पर्याय के परिणति (स्वरूप) का विवक्षित द्रव्य गुण और पर्याय में मिल जाने से मूल द्रव्य, गुण और पर्याय अन्य द्रव्यादि के रूप में प्रतीत होने लग जाता है, इसे यशोविजयजी ने असद्भूत व्यवहार उपनय कहा है।152 उदाहरण के लिए “तप्त लोहे का गोला हाथ जलाता है" ऐसा कहना। इस उदाहरण में जलाना अग्नि का गुण या धर्म है। लोहे का गोला कभी हाथ आदि को नहीं जलाता है,फिर भी पर द्रव्य (अग्नि) की परिणति को लोहे के गोले में आरोपित करके 'लोहे का गोला हाथ जलाता है ऐसा कहना असद्भूत व्यवहार उपनय है।453 उपाध्याय यशोविजयजी ने इस असद्भूत व्यवहार उपनय के एक द्रव्य, गुण और पर्याय में अन्य द्रव्य गुण और पर्याय का आरोपन करके कुल नौ भेद किये हैं154 -
1. द्रव्य में द्रव्य का उपचार करना :- जीव पुद्गल है।455
विवक्षित द्रव्य में अन्य द्रव्य का उपचार करके विवक्षित द्रव्य को अन्य द्रव्य स्वरूप कहना द्रव्य में द्रव्य का उपचार रूप असद्भूत व्यवहार उपनय का प्रथम भेद है। जैसे कि जीव पुद्गल है। जीव द्रव्य और कर्म पुद्गल क्षीर-नीर के समान 451 नयचक्र का परिशिष्ट, पृ. 218, सं.-कैलाशचन्द्र शास्त्री 452 असद्भूतव्यवहार परपरिणति भलयइ
.... द्रव्यगुण पर्यायनोरास गा. 7/5 493 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-1, लेखक धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. 286 454 जे द्रव्यादिक नवविध उपचार थी कहिइं . ..... .............. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, टबा, गा.7/5 455 द्रव्यइ द्रव्य उपचार पुदगल जीवनइं .........
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 7/6
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