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________________ सौपाधिक, वैभाविक अशुद्ध गुण और सौपाधिक गुणी (अशुद्ध) में एवं अशुद्ध पर्याय और अशुद्ध पर्यायवान् में संज्ञा, लक्षण, प्रयोजनादि की दृष्टि से भेद करना अशुद्ध सद्भूत व्यवहार उपनय है । 448 उपाध्याय यशोविजयजी के अनुसार अशुद्ध धर्म और अशुद्ध धर्मी में भेद करना अशुद्ध सद्भूत व्यवहार उपनय है। 449 जैसे मतिज्ञानादि आत्म द्रव्य का गुण है । मतिज्ञान क्षयोपशमिक ज्ञान होने से अशुद्ध गुण है और मतिज्ञान को धारण करने वाली आत्मा भी कर्मोपाधि सापेक्ष होने से अशुद्ध द्रव्य है । इस प्रकार इस उदाहरण में अशुद्ध धर्म और अशुद्ध धर्मी के मध्य भेद किया गया है। इस प्रकार जीवद्रव्य के क्षयोपशमिक मतिज्ञानादि गुण, पुद्गल के कृष्णनीलादि गुण, धर्मास्तिकायादि के अन्य द्रव्यों के आश्रय से होने वाले गति सहायकतादि सद्भूत अशुद्ध गुण है, उन्हें इस प्रकार कहना अशुद्ध सद्भूत व्यवहार उपनय का विषय है । व्यवहारनय और उपनय में निहित अन्तर को स्पष्ट करते हुए यशोविजयजी कहते हैं जो पदार्थ- पदार्थ के मध्य जो भेद करता है वह व्यवहार नय है और जो एक द्रव्यानुगत गुण-गुणी, पर्याय और पर्यायवंत, स्वभाव और स्वभाववंत और कारक - कर्त्ता में जो भेद करता है वह उपनय है । 450 जैसे- घटस्थ गुण और गुणवान् के मध्य भेद बताया गया है। घटस्य रक्ततापर्याय और पर्यायवान् के बीच भेद किया गया है। घटस्य स्वभाव स्वभाववान के मध्य भेद दर्शाया है। मृदा घटो निष्पादितः रूपम् स्वभाव और कारक और कर्ता में भेद किया है। 448 अशुद्ध सद्भूत व्यवहारो यथा 449 'अशुद्ध धर्म धर्मीना भेदची अशुद्ध सद्भूत व्यवहार, 450 ० गुण - गुणीने, पर्याय- पर्यायवन्त — Jain Education International 181 - For Personal & Private Use Only - . आलापपद्धति, सू. 83 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, टब्बा, 7/2 वही, 7/4 www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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