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पंचम अध्याय – पर्याय की अवधारणा एवं प्रकार
1. जैनदर्शन में पर्याय की अवधारणा 2. पर्याय की अवधारणा की आवश्यकता 3. यशोविजयजी की दृष्टि में पर्याय का स्वरूप 4. पर्याय के प्रकार : व्यंजनपर्याय और अर्थपर्याय
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षष्टम अध्याय – द्रव्य, गुण और पर्यायों का पारस्परिक सम्बन्ध अ) 1. एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से सम्बन्ध
2. द्रव्य का गुण से सम्बन्ध 3. द्रव्य और गुण में भेदाभेद रूप पारस्परिक सम्बन्ध 4. गुण के सम्बन्ध में नैयाकि और जैनमत का अन्तर
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ब)
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1. द्रव्य और पर्याय का भेदाभेद 2. द्रव्य का पर्याय से भेद और अभेद की मान्यता की आवश्यकता 3. क्या गुणों की भी पर्यायें होती है ? 4. द्रव्य, गुण और पर्यायों के पारस्परिक सम्बन्ध को लेकर
अन्य दर्शनों की दृष्टि और जैनदृष्टि में अन्तर 5. उपाध्याय यशोविजयजी द्रव्य, गुण और पर्याय के पारस्परिक
सम्बन्ध को कैसे स्पष्ट करते हैं ?
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सप्तम अध्याय -
503-524
उपसंहार
सन्दर्भ ग्रंथ सूची -
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