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तृतीय अध्याय - जैन दर्शन में द्रव्य की अवधारणा का विकास
1. द्रव्य की विभिन्न परिभाषाएँ 2. यशोविजयजी की दृष्टि में द्रव्य का स्वरूप 3. द्रव्य के गुण 4. द्रव्य की पर्याय 5. द्रव्य के प्रकार 6. पंचास्तिकाय और षड्द्रव्य की अवधारणा का पारस्परिक सम्बन्ध 7. षड्द्रव्यों का पारस्परिक सहसम्बन्ध या उपकार 8. अन्य दर्शनों से जैनदर्शन के द्रव्य की समानता और विषमता
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चतुर्थ अध्याय – गुण की अवधारणा एवं प्रकार 1. गुण शब्द के विभिन्न अर्थ 2. प्राचीन ग्रन्थों में गुण शब्द का अर्थ 3. परवर्ती ग्रन्थों में गुण शब्द का अर्थ 4. यशोविजयजी की दृष्टि में गुण का स्वरूप 5. गुण के प्रकार - सामान्य गुण और विशेष गुण 6. यशोविजयजी के अनुसार सामान्य गुणों के प्रकार 7. यशोविजयजी के अनुसार विशेष गुणों के प्रकार 8. सभी द्रव्यों के सामान्य गुण और किसी एक द्रव्य के विशेष गुण 9. स्वभाव 10. सामान्य स्वभाव 11.विशेष स्वभाव 12. नयों के आधार पर सामान्य-विशेष स्वभाव
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