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उपनय के मुख्यतः तीन भेद होते हैं -
1. सद्भूत व्यवहार उपनय
2. असद्भूत व्यवहार उपनय
3. उपचरित असद्भूत व्यवहार उपनय
1. सद्भूत व्यवहार उपनय :
यशोविजयजी ने द्रव्यगुणपर्यायनोरास में सद्भूत व्यवहार को इस प्रकार परिभाषित किया है – वस्तु में विद्यमान वास्तविक गुण या धर्म, असद्भूत गुणधर्म कहलाते हैं। जो गुणधर्म एक द्रव्याश्रित हैं जिसमें अन्य द्रव्य के संयोग की अपेक्षा नहीं रहती है वे सद्भूत गुणधर्म कहलाते हैं।439 इस प्रकार गुण-गुणी में और पर्याय–पर्यायी में भेद करना सद्भूत व्यवहार उपनय है।40 धर्म और धर्मी इन दोनों में जो असाधारण कारण है, उसे धर्म कहते हैं तथा वह असाधारण धर्म जिसमें विद्यमान है वह धर्मी कहलाता है। अतः जो धर्म और धर्मी के मध्य भेद दिखाता है, वह सद्भूत व्यवहार उपनय है।41 धर्म धर्मी में कथंचिद् भेद और कथंचिद् अभेद दोनों होने पर भी भेदाभेद की उपेक्षा करके सद्भूत व्यवहार उपनय मात्र भेद की ओर ही दृष्टिपात करता है।142
सद्भूत व्यवहार उपनय के दो भेद हैं43 -
1. शुद्ध सद्भूत व्यवहार उपनय 2. अशुद्ध सद्भूत व्यवहार उपनय
439 सद्भूत ते माटिं, जे-एक द्रव्य ज छइ . .............. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 7/1 का टब्बा 440 नयचक्र, परिशिष्ट, पृ. 217 441 ते धर्म अनइं धर्मी तेहना भेद देखाडवाथी होई . ............ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, टब्बा, गा. 7/1 442 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, विवेचन - धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. 281 443 सद्भूतव्यवहारो द्विधा - आलापपद्धति, सू. 81
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