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उपनय
'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में उपाध्याय यशोविजयजी ने देवसेनाचार्य कृत आलापपद्धति के अनुसार नय के विवरण के बाद उपनयों की चर्चा उनके भेद-प्रभेदों के साथ विस्तृत रूप से की है।
माइल्लधवल विरचित णयचक्को (नयचक्र) के संपादक सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री ने लिखा है कि - समन्तभद्र ने आप्तमीमांसा की 107 वीं कारिका में नय के साथ उपनय का उल्लेख किया है।36 अकलंकदेव ने अष्टशति में संग्रह आदि नयों के भेद और प्रभेदों को उपनय के रूप में उल्लेखित किया है। आलापपद्धति के कर्ता देवसेन ने नय के निकटवर्ती को उपनय कहा और उसके तीन भेद भी किये हैं। देवसेन के पूर्व उपनयों की चर्चा देखने में नहीं आती है। उपनय का उल्लेख देवसेन के समकालीन अमृतचन्द्र के ग्रन्थों में नहीं है, किन्तु देवसेन के परवर्ती जयसेनाचार्य ने अपनी समयसार आदि ग्रन्थों की टीकाओं में उपनयों की चर्चा की है।437
उपनयः नयानां समीपे उपनयाः
जिस प्रकार नगर के समीपवर्ती क्षेत्र को उपनगर कहा जाता है, वन के निकटवर्ती क्षेत्र को उपवन कहा जाता है, नगर आदि के अन्त के समीपवर्ती स्थान को उपान्त कहा जाता है, उसी प्रकार नयों से समीपता रखनेवाले तथा नयों के समान ही एक की मुख्यता और एक की गौणता करके व्यवहार करने को उपनय कहा जाता है।438
436 नयोपनयैकान्तानां त्रिकालानां समुच्च्य
आप्तमीमांसा, का. 107 437 णयचक्को – संपादक सिद्धान्ताचार्य कैलाशचन्द्र शास्त्री, पृ. 105 438 नयानांमुपनयास्त्रस्त्रियसंख्याकाः
................ द्रव्यानुयोगतर्कणा, व्याख्या, पृ. 98
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