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________________ 171 इस प्रकार पर्यायवाची शब्दों में निरूक्ति (व्युत्पत्ति) के भेद से अर्थभेद को आरूढ़ करनेवाल नय समभिरूढ़ नय है।408 यह नय काल आदि भेद नहीं होने पर भी मात्र पर्यायवाची शब्दों के भेद से ही पदार्थ में भेद मान लेता है। जैसे इन्द्र, पुरन्दर और शक्र । ये तीनों शब्द स्वर्ग के स्वामी 'इन्द्र' के वाचक हैं और एक ही लिंग और वचन के हैं। किन्तु समभिरूढ़ नय के अनुसार ये तीनों शब्द इन्द्र के भिन्न धर्मों को कहते हैं। इन्द्रनात इन्द्रः -यह इन्द्र शब्द की व्युत्पत्ति है, जिसका अर्थ है परम ऐश्वर्यमान । पुदरिणात् पुरन्दरः-यह पुरन्दर शब्द की व्युत्पत्ति है। पुरन्दर का अर्थ है नगरों का विदारण करनेवाला। 'शकनात् शक्रः -यह शक्र शब्द की व्युत्पत्ति है, जिसका अर्थ है सामर्थ्यवान् ।09 जिन शब्दों की व्युत्पत्ति भिन्न-भिन्न होती है, वे शब्द भिन्न अर्थों के द्योतक होते हैं। अतः इन्द्र न तो शक हो सकता है और नहीं शक्र पुरन्दर हो सकता है। इसी प्रकार पुरन्दर भी शक्र या इन्द्र नहीं हो सकता है। प्रस्तुत नय जिस शब्द का जो व्युत्पत्तिलभ्य अर्थयोग्य हो, उस शब्द का वही अर्थ स्वीकार करता है। इस नय के मत से 'इन्द्र' शब्द से 'शक्र' शब्द उतना ही भिन्न है, जितना घट से पट शब्द पृथक् है। यह नय घटादि सत् पदार्थों के विषय में संक्रमण को अंगीकार नहीं करता है। दूसरे शब्दों में सत् अर्थों में संक्रमण न होना ही समभिरूढ़नय है।410 समभिरूढ़ नयानुसार लिंग, वचन आदि के प्रयोग से जैसे वस्तु में भिन्नता आती है, वैसे ही संज्ञा–भेद से भी विभिन्नता आती है। एक अर्थ के वाचक अनेक संज्ञा शब्द नहीं हो सकते हैं और एक ही संज्ञा शब्द अनेक वस्तुओं का वाच्य नहीं हो सकता है। जो जिस वाच्य का वाचक होता है, उसका पर्यायवाची दूसरा नहीं हो 408 अ) पर्यायशब्देषु निरूक्तिभेदेन भिन्नमर्थ समभिरोहन् समभिरूढ़ ............ प्रमाणनयतत्त्वालोक, 7/36 ब) पर्यायशब्देषु निरूक्तिभेदेने भिन्नमर्थ .... ............................. जैनतर्कभाषा, पृ. 62 स) भिन्नं समभिरूढाख्य शब्दार्थ तथैव च द्रव्यानुयोगतर्कणा, 6/15 द) समिभरूढस्त पर्यायशब्दानां प्रविभक्तमेवार्थमभिमन्यते स्याद्वादमंजरी, पृ. 246 च) परस्परेणाभिरूढः समभिरूढ़: .. आलापपद्धति, सू. 201 409 तद्यथा इन्द्रनात् इन्द्रः ........... स्याद्वादमंजरी, पृ.246 410 सत्स्वर्थेष्वसंक्रमः समभिरूढः तत्त्वार्थभाष्य, 1/33 पर भाष्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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