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________________ शब्दनय जिन-जिन शब्दों के लिंगादि भिन्न-भिन्न होते हैं, उन-उन शब्दों का भिन्न-भिन्न अर्थ करता है। 6. समभिरूढ़नय : यशोविजयजी ने द्रव्यगुणपर्यायनोरास में दिगम्बर जैनाचार्यों के मन्तव्य के अनुसार द्रव्यार्थिक आदि नौ नयों के क्रम में समभिरूढ़नय का भी प्रतिपादन किया है। यहाँ यशोविजयजी के पहले अन्य जैनाचार्यों ने अपनी रचनाओं में समभिरूढ़नय को किस प्रकार परिभाषित किया है, इसका अवलोकन कर लेना भी आवश्यक है I लिंग, वचन, काल आदि के आधार पर शब्दों के अर्थ में भेद करनेवाली भेदग्राही बुद्धि जब और गहराई में उतरकर झांकने लग जाती है तब पर्यायवाची शब्दों में भी उनकी व्युत्पत्ति के आधार पर अर्थभेद करने के लिए तैयार हो जाती है। इसी सूक्ष्म भेदग्राही बुद्धि से समभिरूढ़ नय का अवतरण होता है। समभिरूढ़ नय कहता है केवल लिंग आदि के भेद से अर्थ का भेद स्वीकार करना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु व्युत्पत्ति मूलक शब्दों के भेद से भी अर्थभेद मानना चाहिए । - 170 शब्द के पर्यायवाची शब्दों में व्युत्पत्ति की दृष्टि से अर्थभेद का आरोपण करने वाला नय समभिरूढ़ नय है। 406 पर्यायवाची शब्दों में अर्थभेद करना इस नय का मुख्य विषय है । यह नय शब्दों में उनकी व्युत्पत्ति के आधार पर अर्थभेद मानकर प्रत्येक शब्द का अर्थ भिन्न-भिन्न ही करता है । घट शब्द भिन्न अर्थवाचक है और कुम्भ शब्द भिन्नार्थवाचक है। जैसे घटनात् घट इति विशिष्ट चेष्टावान्" वाच्यार्थ को घट कहते हैं। कूटकौटिल्ये कूटनात् कौटिल्ययोगात् कूटः यह व्युत्पत्ति कूटः शब्द की है। उभ-उभ पूरणो कुम्भनात् कुत्सितपूर्णात् कुम्भः यह व्युत्पत्ति कुम्भः शब्द की है । घट, कूट और कुम्भ में शब्द भेद से अर्थभेद किया गया है | 407 406 पर्यायशब्दभेदेन भिन्नार्थस्याधिरोहणात् नय समभिरूढ़ नयवाद - मुनि फूलचन्द्र 'श्रमण', पृ. 138 407 Jain Education International For Personal & Private Use Only तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, 1/33/76 www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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