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________________ 169 सूचित वाच्यार्थ को एक ही पदार्थ मानता है। जैसे कुम्भ, कलश और घट आदि एक ही पदार्थ के वाचक हैं।101 यशोविजयजी ने अपनी कृति 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास में शब्दनय को इस प्रकार परिभाषित किया है -प्रकृति, प्रत्यय आदि व्याकरण के नियमों से व्युत्पत्ति सिद्ध शब्दों को ही स्वीकार करनेवाला तथा लिंग और वचनभेद से, अर्थभेद को मान्यता देने वाला नय, शब्दनय कहलाता है।402 शब्दनय मूल धातु कौनसी है ? कौनसा प्रत्यय किस अर्थ में लगा है ? कौन सा काल व कारक लगा है? इत्यादि का निरीक्षण करके ही शब्द के वाच्यार्थ को मानता है। जैसे पाचक और पाचिका। इसमें पच् प्रकृति है जिसका अर्थ है पकाना। 'अक्' प्रत्यय है जिसका अर्थ है कर्ता। अतः पाचक शब्द से पाक् कर्तृत्व-पुल्लिंग का ज्ञान होता है। क्योंकि यदि पाक् कर्तृत्व-स्त्रीलिंग होता तो उसका वाचक शब्द 'पाचिका' बनता जो 'इन' प्रत्यय लगकर बनता है।03 इस प्रकार प्रकृति-प्रत्यय आदि व्याकरण नियमों से सिद्ध शब्दों का ही एक निश्चितार्थ होता है। परन्तु जो शब्द व्याकरण नियमों का उल्लंघन करके बनता है, उसका सटीक अर्थ दृष्टिगोचर नहीं हो सकता है। यशोविजयजी के अनुसार शब्दनय व्याकरण सिद्ध शब्दों में भी लिंग और वचन आदि भेद से अर्थ के भेद को स्वीकार करता है।404 जैसे तट, तटी, तटम् । इन तीनों शब्दों का अर्थ तो 'किनारा' ही है। परन्तु लिंग भेद से तटं, तटी, तटम् का अर्थ भिन्न-भिन्न है। समुद्र का किनारा तट: है। तटी नदी का किनारा है और सामान्य रूप से बहने वाले जल झरणादि) के किनारे को तटम् कहा जाता है। इस प्रकार 401 अर्थशब्दनयोनैके पर्यायैकेमेव च . नयकर्णिका, श्लो.14 402 शब्द प्रकृति प्रत्ययादिक, सिद्ध मणइ शब्द रे ........................ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 6/14 4403 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-1, - अभयशेखरसूरि, पृ. 236 404 पणि लिंग वचनादि ............. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 6/14 का टब्बा 405 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-1 - धीरजलाल डाह्यालाल मेहता, पृ. 274 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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