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मानता है। तट, तटी में पुल्लिंग और स्त्रीलिंग के भेद से भेद मानता है। 392 'कमल' यह मृग का वाचक है; कमला का अर्थ लक्ष्मीदेवी है, कमलं से तात्पर्य कमल का फूल है। सुमनः (नपुंसकलिंगी) सुन्दर मन का वाचक है।, सुमनस् (पुल्लिंगी) देवपद का पर्यायवाची है । सुमनस् (स्त्रीलिंगी) से तात्पर्य पुष्प से है । 393
4. संख्याभेद :
शब्दनय शब्दों में वचनान्त से वाच्यार्थ में भेद करता है । जलं आप; वर्षाः ऋतुः आम्राः वनम् आदि में एकवचन के स्थान पर बहुवचन या बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग करना अथवा विशेषण - विशेष्य के रूप में प्रयोग करना शब्द नय को मान्य नहीं है । 394 शब्दनय की दृष्टि में यह संख्या व्याभिचार है । यह नय एकार्थ वाचक पर्यायवाची शब्दों में वचन के आधार पर भेद करता है। जैसे जलं और आपः । जलं यह नपुंसकलिंग में एकवचनान्त पद है। जबकि आपः स्त्रीलिंग में बहुवचनान्त पद है। अतः जल के एक बूंद के लिए आपः शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। इसी प्रकार बालकः का अर्थ है एक बालक ; बालकौ का अर्थ है दो बालक; बालकाः का अर्थ है बहुत से बालक । दारा और कलत्र क्रमशः बहुवचनान्त और एकवचनान्त है। यद्यपि दोनो शब्द पत्नी के ही वाचक हैं | परन्तु वचनभेद से दोनों का अर्थ भिन्न-भिन्न है | 395
5. पुरूषभेद
पुरूष तीन प्रकार के होते हैं - प्रथमपुरूष, मध्यमपुरूष और उत्तमपुरूष । शब्दनय पुरूषभेद से भी वाच्यार्थ में भेद करता है । 'एहि, मन्ये रथेन यास्यसि नाहि
जैनतर्कभाषा, पृ. 61
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1392 तटस्तटीतटमित्यादौ लिंग भेदेन
मुनि फूलचन्द्र 'श्रमण, पृ. 130 131
393 नयवाद 394 संख्याभिचारः – जलमापः वर्षाऋतुः आम्रावनम्
395
दाराः कलत्रमित्यादौ संख्या भेदेन
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सर्वार्थसिद्धि, 1/33
जैनतर्कभाषा, पृ. 61
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