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________________ समय) में विद्यमान राजगृह नगरी से भूतकाल की राजगृह नगरी भिन्न है । अतः उसी का वर्णन प्रस्तुत होने से 'राजगृह नगरी थी' ऐसा कहा गया है। 389 यहाँ पर कालभेद से अर्थभेद किया गया है। 2. कारक भेद : कर्त्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान एवं अधिकरण ये छह कारक हैं। शब्दनय 390 इन कारकों के भेद से शब्दों में अर्थभेद करता है । यथा - 3 कर्त्ताकारक धर्म जीव को सद्गति में पहुंचा देता है धर्म को उपलब्ध जीव सुखी होता है धर्म के माध्यम से ही कर्मों का नाश होता है धर्म के लिए प्रयत्न करना चाहिए धर्म से विमुख जीव दुःखी होता है स्वधर्म में दृढ़ होना चाहिए - अधिकरण कारक कर्मकारक = Jain Education International सम्प्रदान कारक करणकारक अपादानकारक यहाँ सभी कारकों में धर्म शब्द का प्रयोग है, किन्तु उसका अर्थ अलग-अलग प्रतिफलित होता है । 166 3. लिंगभेद लिंग तीन प्रकार के होते हैं - पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग । शब्दनय इन तीन लिंग के भेद से वाच्यार्थ में भेद करता है । स्त्रीलिंग के साथ पुल्लिंग का प्रयोग करना जैसे 'तारका स्वातिः' पुल्लिंग के साथ स्त्रीलिंग का प्रयोग जैसे 'अवगमो विद्या, स्त्रीलिंग के साथ नपुंसकलिंग का प्रयोग जैसे - वीणा आतोद्यम्' शब्दनय इस प्रकार एक लिंग के स्थान पर दूसरे लिंग के प्रयोग को व्याभिचार 389 तत्त्वार्थसूत्र - पं. सुखलालजी, पृ. 43 मुनि फूलचन्द 'श्रमण, पृ. 129 390 नयवाद 391 तद्यथा लिंगव्याभिचारस्तावत् स्त्रीलिंगो पुल्लिंगाधिस्थानं For Personal & Private Use Only 391 तत्त्वार्थवार्तिक, 1/33/15 www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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