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________________ 165 अर्थ गौण हो, वही शब्द नय है। शब्द के आधार पर अर्थग्रहण करनेवाला नय शब्द नय है। यह नय शब्द पर निर्भर रहता है। वस्तु-तत्त्व के यथार्थ स्वरूप का शब्द से प्रतिपादन करना तथा कर्ता, कर्म आदि कारकों की अपेक्षा से अर्थ का निरूपन करना शब्दनय है।385 शब्दों में काल आदि के भेद से अर्थ भेद का प्रतिपादन करनेवाला नय शब्दनय है।386 काल आदि से तात्पर्य है, काल के अतिरिक्त कारक, लिंग, संख्या और उपसर्ग हैं।387 यह नय काल, कारक आदि के भेद से शब्दों के अर्थ में भेद करता है, किन्तु पर्यायवाची शब्दों को एक अर्थ का वाचक मानता है। 1. कालभेद : परिवर्तन काल का स्वभाव होने से प्रत्येक द्रव्य की पर्याय प्रतिपल बदलती रहती है। भूत, भविष्य और वर्तमान काल के भेद से पदार्थों में भी परिवर्तन आता है। तीनों काल में पदार्थ की स्थिति एक समान नहीं होती है। इसलिए यह नय कालभेद से अर्थभेद करता है। जैसे 'सुमेरू था', 'सुमेरू है' और 'सुमेरू होगा। तीनों कालों की अपेक्षा से यह नय सुमेरू को भिन्न-भिन्न मानता है।388 "तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहं नामं नयरी होत्था।" आगमों में ऐसे उल्लेख आते हैं। इसका स्थूलार्थ है राजगृह नाम की नगरी भूतकाल में थी और वर्तमानकाल में नहीं है। जबकि लेखक के समय में भी राजगृह नगरी थी। अब प्रश्न यह उठता है कि लेखक के समय में राजगृह नगरी विद्यमान थी तो लेखक ने 'थी' ऐसा प्रयोग क्यों किया ? इसका उत्तर शब्दनय से मिलता है। वर्तमान (लेखक के 385 यथार्थाभिधाना शब्दः ............ 386 अ) कालादिभेदेन ध्वनेरर्थभेदं प्रतिपाद्यमानः शब्दनयः ब) कालादिभेदेन ध्वनेरर्थभेदं प्रतिपाद्यमानः शब्दः स) कालादिभेदेन ध्वनेरर्थभेदं प्रतिपाद्यमानः शब्दः ......... 387 कालकारक लिंग संख्यापुरूषोपसर्गाः कालादयः 38 तत्र बभूव भवति भविष्यति सुमेरूरित्यत्रा तत्त्वार्थाधिगम भाष्य, 1/35 प्रमाणनयतत्त्वालोक, 7/32 जैनतर्कभाषा, पृ. 61 स्याद्वादमंजरी, पृ. 249 जैनतर्कभाषा, पृ. 61 .......... वही, पृ.61 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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