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वस्तु परिणमनशील होने से सतत परिवर्तन चलता रहता है। एक पर्याय एक समय तक ही रहती है। दूसरे समय में वह पर्याय नष्ट हो जाती है और दूसरी पर्याय उत्पन्न हो जाती है। इस एक समयवर्ती पर्याय को अर्थपर्याय कहा जाता है। अतः जो अर्थपर्याय को ही अपने दृष्टिकोण में लेता है, वह नय सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय है। परन्तु लोक व्यवहार में कोई भी पर्याय (अवस्था) जब तक चलती रहती है, तब तक उसे वर्तमान पर्याय ही कहा जाता है| जैसे-मनुष्य पर्याय आयु पर्यन्त रहती है। ऐसी असंख्य समयवाली स्थूलपर्याय स्थूल ऋजुसूत्रनय का विषय है।
महोपाध्याय यशोविजयजी ने प्रस्तुत कृति में क्षणिक पर्याय को ग्रहण करनेवाली दृष्टि को सूक्ष्मऋजुसूत्रनय तथा मनुष्य आदि दीर्घकालीन पर्याय को स्वीकार करने वाली दृष्टि को स्थूल ऋजुसूत्रनय कहा है।83 सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय ‘एक समय' को ही वर्तमान के रूप में स्वीकार करता है। क्योंकि पूर्वसमय नष्ट हो जाने से अतीत और परवर्ती समय उत्पन्न नहीं होने से अनागत है। स्थूल ऋजुसूत्रनय दीर्घ वर्तमान काल को भी वर्तमान पर्याय के रूप में स्वीकार कर लेता है।
5. शब्दनय -
'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' की छठी ढाल में यशोविजयजी ने शब्दनय को परिभाषित किया है। जिसके द्वारा वस्तु-तत्त्व का कथन किया जाए, उसे शब्द कहते हैं।84 अतिशयज्ञानी अतिसूक्ष्म और अतिदूरस्थ पदार्थों को भी हस्तामलवत् प्रत्यक्ष ही जानते हैं, किन्तु अल्पज्ञ जीव को पदार्थों का बोध शब्द के द्वारा ही हो सकता है। दूसरी ओर शब्द ही एक ऐसा साधन है जिससे प्राणी अपने विचारों, चिन्तनों एवं अनुभवों को अभिव्यक्ति दे सकता है। वस्तु शब्द के द्वारा ही कही जाती है और बुद्धि उसी अर्थ को मुख्यरूप से मान लेती है। इस प्रकार जिस नय में शब्द मुख्य हो और
383 क्षणिक पर्याय कहइं सूषिम, मनुष्यादिक थूल रे ..................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 6/13 384 शपतीति शब्दो नयः शब्दप्रधाननत्वात्
....... प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृ. 663
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