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द्रव्य के अभाव में उसकी कोई सत्ता है। पर्यायार्थिक नय केवल भावनिक्षेप को स्वीकार करता है। जबकि द्रव्यार्थिकनय चारों ही निक्षेप को मानता है। परन्तु सिद्धसेन दिवाकर आदि द्रव्यार्थिक के तीन और पर्यायार्थिकनय के चार भेद मानते हैं और ऋजुसूत्रनय को पर्यायार्थिक मानते हैं।
ऋजुसूत्रनय वर्तमानकाल में होने वाली पर्याय को ही मानता है और बौद्धदर्शन भी क्षणिकवाद का ही समर्थन करता है। परन्तु दोनों में अन्तर है। क्षणिकवादी बौद्धदर्शन द्रव्य की सत्ता को बिल्कुल नहीं मानकर केवल पर्याय को ही महत्त्व देता है। जबकि प्रस्तुत नय वस्तु की सत्ता को नकारता नहीं है। अपितु उसे गौण रूप से स्वीकार करके पर्याय को मुख्यता प्रदान करता है।
नयचक्र और आलापपद्धति का अनुसरण करके प्रस्तुत 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में ऋजुसूत्रनय के सूक्ष्म और स्थूल रूप से दो भेद किये गये हैं।
सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय और स्थूल ऋजुसूत्रनय -
जो द्रव्य की एक समयवर्ती क्षणिक पर्याय को ग्रहण करता है वह सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय है और जो अपनी आयुपर्यन्त रहनेवाली मनुष्य आदि पर्याय को उतने समय तक मनुष्य रूप में स्वीकार करता है,382 वह स्थूल ऋजुसूत्रनय है। सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय क्षणिक विषयों को अपना विषय करताहै। जैसे- शब्द क्षणिक है, वैषयिक सुख क्षणिक है, दीपक की शिक्षा क्षणिक है आदि| जबकि स्थूल ऋजुसूत्रनय असंख्यात समयों में भी विद्यमान रहने वाली पर्याय को ग्रहण करता है। जैसे -युवावस्था, वृद्धावस्था आदि।
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382 अ) जो एयसमयवट्टी गेण्हइ दवे धुवत्तपज्जायं। ___ सो रिउसुत्तो सुहुमो सव्वंपिसदं जहा खणियं ।।
..नयचक्र, गा. 210 ब) सूक्ष्म ऋजुसूत्रो यथा एकसमयवस्थायी पर्यायः
स्थूल ऋजुसूत्रो यथा मनुष्यादि पर्यायाः तदानुः प्रमाणकाल तिष्ठन्ति .... आलापपद्धति, सूत्र 74,75 स) स्वानुकूलं वर्तमान ऋजुसूत्रो ही भाषते
.............. द्रव्यानुयोगतर्कणा, 6/14
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