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________________ 162 महोपाध्याय यशोविजयजी के 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में विद्यमान (वर्तमान) और अपने वर्तमान अर्थ को ही पदार्थ के रूप में स्वीकार करने वाले नय को ऋजुसूत्रनय कहा है।79 यह नय भूतकाल और भाविकाल का विचार नहीं करके मुख्यरूप से वर्तमानकाल का ही विचार करता है। क्योंकि अतीत और अनागत पदार्थ अर्थक्रिया करने में समर्थ नहीं है। अर्थक्रियाहीन पदार्थ से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होने से, उसे पदार्थ के रूप में नहीं माना जा सकता है।380 यशोविजयजी ने छठी ढाल में ऋजुसूत्रनय की व्याख्या में 'वर्तता' के साथ 'निज अनुकूल' विशेषण भी दिया है। यथा वर्ततो ऋजुसूत्र भासई, अर्थ निज अनुकूल रे' ऋजुसूत्रनय वर्तमानकाल के साथ अपने अनुकूल अर्थात् जिससे अपने कार्य सिद्ध हो, उसे ही पदार्थ के रूप में स्वीकार करता है। जैसे कि अपने पिता, भाई या पुत्र की संपत्ति के आधार पर स्वयं को धनवान नहीं माना जाता है। क्योंकि उस संपत्ति का उपयोग अपनी इच्छानुसार नहीं कर सकता है| परवस्तु अपने कार्यसाधक में उपयोगी नहीं होने से मिथ्या है। अपनी इच्छानुसार जिस वस्तु का उपयोग किया जा सके, उसी वस्तु की अपने लिए सत्ता है। इसलिए ऋजुसूत्रनय वर्तमान काल में भी निजानुकूल अर्थात् अपने कार्य की साधक वस्तु को ही वास्तविक मानता है।91 ऋजुसूत्रनय द्रव्य निक्षेप में वर्तमानकालिक पर्याय या अंश को स्वीकार करता है। भूत, भावी पर्याय को स्वीकार नहीं करता है। वस्तुतः यह नय द्रव्यार्थिक है, पर्यायार्थिक तो कथंचित् ही है। अनुयोगद्वारसूत्र और विशेषावश्यकभाष्य का अनुसरण करने वाले विद्वान द्रव्यार्थिकनय के चार भेद मानते हैं। वे नैगम से लेकर ऋजुसूत्र नय तक के चार नयों को द्रव्यार्थिक मानते हैं। चाहे ऋजुसूत्रनय वर्तमानकालिक पर्याय को ग्रहण करता हो, किन्तु पर्याय द्रव्य से न तो अलग या भिन्न है और न 379 वर्ततो ऋजुसूत्र भासई अर्थ जिन अनुकूल रे .................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 6/13 380 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, -भाग 1 - अभयशेखर सूरि, पृ. 234 381 द्रव्य-गुण-पर्यायनोरास-भाग 1 - धीरजलाल डाह्यालाल मेहता, पृ. 270 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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