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सकती है। फलतः उन्हें विद्वान नहीं कहा जा सकता है। जिसके मस्तिष्क में दृष्टव्य विषय रेडियम की तरह वर्तमान में प्रतिभासित हो रहा हो, उसे ही विद्वान कहा जाता है।373 इसलिए ऋजुसूत्रनय प्रत्युत्पन्नग्राही है।74 जो अध्यवसाय भूत और भविष्यत् की उपेक्षा करके वर्तमान को ही ग्रहण करता है, वह ऋजुसूत्रनय कहलाता है।75
वस्तुतः जो वर्तमानकालीन पर्याय है, वही वस्तु है। भूत और भविष्यकालीन पर्याय क्रमशः विनष्ट और अनुत्पन्न होने के कारण असत् है और असत् को स्वीकार करना कुटिलता है। जो श्रुतज्ञान विशेष सीधे ढंग से वस्तु को मुक्ताफल की तरह एक सूत्र में पिरोए, वह ऋजुसूत्रनय है। भग्न मोती या अविद्ध मोतीपिरोया नहीं जा सकता है। विद्ध मोती ही वर्तमान क्षण में एक लड़ी में पिरोये जा सकते हैं। अतीत और अनागत पर्यायभग्न और अविद्ध मोती के सदृश होने से अग्राह्य है। वर्तमान पर्याय विद्ध मोती की भांति ग्राह्य है। अतः वर्तमान पर्याय ही ऋजुसूत्रनय का ग्राह्य विषय है।
___ ऋजुसूत्रनय क्षणिकवाद का समर्थन करता है। प्रत्येक पर्याय अपने-अपने क्षण तक ही सीमित है। इस नय के अनुसार 'काला कौआ ऐसा वाक्य प्रयोग नहीं हो सकता है। काला, काला है और कौआ, कौआ है। क्योंकि काला और कौआ दोनों भिन्न-भिन्न दो अवस्थाएं हैं। यदि काला काक रूप हो जाये तो कोयल आदि समस्त काले पक्षी काक हो जायेंगे और यदि सभी काले काक हो जाये तो काक का अस्तित्व ही नहीं रहेगा। अतः ऋजुसूत्रनय वर्तमानकाल में अर्थपर्याय के रूप में परिणत वस्तु को ही सत् रूप में सिद्ध करता है, अन्य को नहीं।78
" नयवाद, – मुनि फूलचंद 'श्रमण', पृ.91 * पच्चुत्पन्नग्राही उज्जुसुओ णयविहि मुणेयव्वो ..... ... अनुयोगद्वार, गा. 138
आवश्यकनियुक्ति, गा. 470, विशेषावश्यक भाष्य, गा. 2223, जैनतर्कभाषा, पृ. 61 Fऋजु अवक्रं वस्तु सूत्रयतीति ऋजुसूत्रः –नयप्रदीप, नयवाद-मुनि फूलचंद्र, पृ.88 से उद्धृत न कृष्णः काकः उभयोरूपि स्वात्मकत्वात् ........................ तत्त्वार्थवार्तिक, 1/33/7 जो वट्टमाणे काले, अत्थपज्जायपरिणदं अत्थं ................... कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गा. 274
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