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________________ में कौनसा संसारी ? मनुष्य या तिर्यंच ? अतः सभी स्थानों पर व्यवहार करने के लिए विशेष की आवश्यकता होती है | 368 4. ऋजुसूत्रनय प्रस्तुत ‘द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में ग्रन्थकार ने ऋजुसूत्रनय एवं उसके भेदों की चर्चा की है। ऋजु का अर्थ है सहजतम अर्थात् वर्तमानकालीन पर्याय अनुलक्षी; सूत्र का अर्थ है श्रुतज्ञान। जो श्रुतज्ञान वर्तमान पर्याय अनुलक्षी है, उसे ऋजुसूत्रनय कहते हैं। 309 यह नय पूर्व और पश्चातवर्ती कालों के विषयों को अपने दृष्टिकोण में न लेकर वर्तमान काल की पर्याय के विषयभूत पदार्थों को ही ग्रहण करता है 370 भूतकालिक और भविष्यकालीन पर्यायों के आधार पर वचन व्यवहार करने हेतु यह नय तैयार नहीं है । क्योंकि पदार्थ की भूत - पर्याय नष्ट हो गई और भावीपर्याय अभी उत्पन्न नहीं है। अतः भूत और भावी से काम नहीं चल सकता है। वस्तुतः वर्तमान काल की पर्याय से ही कार्य होता है । जैसे - वर्तमान समृद्धि ही सुख का साधन होने से समृद्धि कही जा सकती है। भूत कालिक समृद्धि का स्मरण या भावीसमृद्धि की कल्पना वर्तमान में सुखदायक न होने से समृद्धि नहीं कही जा सकती है। इसी तरह पुत्र मौजूद हो और वह माता - पिता की सेवा करे तब तो वह पुत्र है । किन्तु जो पुत्र अतीत हो या भावी हो, या वर्तमान में मौजूद नहीं है, वह पुत्र ही नहीं है। 371 इसलिए ऋजुसूत्रनय अतीत और अनागत की अपेक्षा न रखकर वर्तमानकालीन पर्याय मात्र को ही ग्रहण करता है। 372 एक व्यक्ति जो अभी तक निरक्षर है। परन्तु भविष्य में विद्वान बनेगा और दूसरा व्यक्ति अनभ्यास के कारण कण्ठस्थ विद्या को बिल्कुल भूल गया। वर्तमान में दोनों से कार्य - सिद्धि नहीं हो 368 द्रव्यानुयोगतर्कणा – ठाकुर प्रसाद शर्मा, पृ. 92 369 जैनदर्शन में नय की अवधारणा, - डॉ. धर्मचन्द्र जैन, पृ. 76 370 ऋजु प्रगुणं सूत्रयति 371 तत्त्वार्थसूत्र - सुखलालजी, पृ. 42 372 सतां साम्प्रतानामर्थानामभिधान परिज्ञानं ऋजुसूत्रः Jain Education International 160 For Personal & Private Use Only सर्वार्थसिद्धि, 1/33 तत्त्वार्थभाष्य, 1/35 पर भाष्य www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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