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अपर संग्रहनय द्रव्यत्व, पर्यायत्व आदि अपर सामान्य को ग्रहण करके उनके भेदों के प्रति उदासीनता रखता है। 346 इस नय के अनुसार धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीवद्रव्य सब एक हैं। क्योंकि सबमे द्रव्यत्व रूप सामान्य विद्यमान है। छहों द्रव्यों में द्रव्यत्व का सद्भाव है। परसंग्रहनय में सत् रूप से समस्त पदार्थों का संग्रह किया जाता है तथा अपरसंग्रहनय द्रव्यरूप से समस्त द्रव्यों का, गुणरूप से समस्त गुणों का, गौत्व रूप से समस्त गौओं का संग्रह करता है | 347
द्रव्यगुणपर्यायनोरास में जीवत्व सामान्य की दृष्टि से समस्त जीवों को संग्रहित करने वाले नय को विशेषसंग्रहनय या अपरसंग्रहनय कहा है। 348 द्रव्य विशेष 'जीव' का संग्रह करने से विशेष संग्रहनय है। जीवद्रव्य के भेद है। जैसे संसारी और मुक्त | मुक्त के भी 15 भेद हैं तो संसारी के देव, नारकी, मनुष्य और तिर्यंच ये चार भेद हैं। तिर्यंच के ऐन्द्रियादि पांच भेद हैं। इस प्रकार जीवों में परस्पर भेद होने पर भी जीवत्व या जीवनधारण करने में कोई भेद नहीं है। जीव के सहचारी भावप्राण सभी जीवों में होते हैं। अतः द्रव्यविशेष 'जीव' का संग्रह करने से यह नय विशेषसंग्रहनय है। इसमें जिसको पहले सामान्य द्रव्य के रूप से ग्रहण किया गया था, उसी का अवान्तर भेद जीवरूप से ग्रहण किया गया है।
3. व्यवहारनय
महोपाध्याय यशोविजयजी ने अपनी कृति 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में सर्वग्राही संग्रहनय के पश्चात् विशेषग्राही व्यवहारनय की व्याख्या सूक्ष्मदृष्टि से की है। जो व्यवहार करता है या जो सामान्य का तिरस्कार करता है, वह व्यवहारनय है । 349
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• 346 द्रव्यत्वादीनि अवान्तर सामान्यानि
347 अकलंकग्रन्थत्रयम् सं. पं. महेन्द्रकुमार शास्त्री, प्रस्तावना, पृ. 96
1348 संग्रहइ नय संग्रहो ते, द्विविध ओघ विशेष रे
349 ववहरणं ववहरए स तेण वऽवहीराए व सामन्नं
प्रमाणनयतत्त्वालोक, सू. 7/19
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द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 6 / 11 विशेषावश्यकभाष्य, गा. 2212
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