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________________ 154 करता है।37 निश्चित रूप से संग्रहनय सामान्य ग्राहक है। जहाँ-जहाँ सामान्य है, वहाँ-वहाँ संग्रहनय का विषय है। यशोविजयजी ने एक समान धर्मवाले पदार्थों को संग्रहित करने वाले नय को संग्रहनय कहा है।38 सर्व पदार्थों को यदि सामान्य दृष्टि से देखा जाय तो वे सभी समान रूप से दिखाई देंगे। प्रत्येक पदार्थ में कोई न कोई सादृश्य, समानधर्म या समानता अवश्यमेव होती है। कोई भी पदार्थ अन्य पदार्थ से सर्वथा विलक्षण नहीं होता है। इसी सामान्य धर्म के आधार पर सभी पदार्थों का संग्रह हो जाता है। जैसे पुष्प जाति में गुलाब, चमेली, चंपा, कमल, सूर्यमुखी आदि सभी पुष्पों का संग्रह हो जाता है। यशोविजयजी ने संग्रहनय के दो भेदों का निर्देश किया है - 1. ओघ संग्रहनय (सामान्य संग्रहनय) 2. विशेष संग्रहनय 1. ओघसंग्रहनय : 'ओघ' से तात्पर्य है सामान्य। द्रव्यगुणपर्यायनोरास' के अनुसार सर्व द्रव्यों को सत्-सामान्य की अपेक्षा से संग्रहित करने वाला ओघसंग्रहनय है। जैसे- सर्वद्रव्य परस्पर अविरोधी हैं।39 सभी द्रव्यों में द्रव्यत्व, वस्तुत्व, अस्तित्व आदि सामान्य गुण समानरूप से पाये जाते हैं। इस उदाहरण से सत् रूप सामान्य में सभी द्रव्यों को संग्रहित किया गया है। 337 अ) अर्थानां सर्वैकदेशसंग्रहणं संग्रहः .......... तत्त्वार्थाधिगम सूत्र,1/35 पर भाष्य ब) सामान्यसंग्रह भेदक व्यवहार द्रव्यानुयोगतर्कणा, 6/13 पर भाष्य स) सामान्यमात्रग्राही परामर्शः संग्रह जैनतर्कभाषा, पृ.60 द) सामान्यमात्रग्राही परामर्शः संगह . प्रमाणनयतत्त्वालोक, सू. 7/13 स) संग्रहो मन्यते वस्तु सामान्यात्मकमेवहि .......... नयकर्णिका, श्लो. 6 338 संग्रहइ नय संग्रहो ते द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 6/11 339 संग्रहइ नय संग्रहो ते ..... ........................ द्रव्य द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 6/11 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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