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वस्तु द्रव्य, गुण, पर्यायों से युक्त होती है। नैगमनय जब किसी वस्तु को अपना विषय बनाता है तब उस वस्तु के द्रव्य-गुण-पर्याय भी नैगमनय के विषय बन जाते हैं। इस प्रकार द्रव्य-गुण-पर्याय को अपना विषय बनानेवाले इस नैगमनय के मुख्य रूप से तीन भेदों का तथा उनके प्रभेदों का उल्लेख तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक के नय विवरण में किया गया है।330 जैसे -
1. द्रव्यनैगमनय 2. पर्यायनैगमनय 3. द्रव्य–पर्याय नैगमनय
द्रव्यनैगमनय के दो भेद । पर्यायनैगमनय के तीन भेद द्रव्य–पर्याय नैगमनय के चार भेद शुद्धद्रव्यनैगमनय 1. अर्थपर्यायनैगमनय
शुद्धद्रव्यअर्थपर्यायनैगमनय अशुद्धद्रव्यनैगमनय | 2. व्यंजनपर्यायनैगमनय
2. शुद्धद्रव्यव्यंजनपर्यायनैगमनय 3. अर्थ-व्यंजनपर्यायनैगमनय
3. अशुद्धद्रव्यअर्थपर्यायनैगमनय
| 4. अशुद्धद्रव्यव्यंजनपर्यायनैगमनय द्रव्यगुणपर्यायनोरास में भूत, भावि और वर्तमान इन तीन नैगमनय का ही उल्लेख है।
संग्रहनय -
पुरानी गुजराती भाषा में रचित द्रव्यगुणपर्यायनोरास में ग्रन्थकार यशोविजयजी ने नौ नयों के क्रम में सर्वग्राही संग्रहनय की व्याख्या भी भेदों के साथ प्रस्तुत की
है।
जो ‘सभी (सर्व) को सम्यक् रूप से ग्रहण करता है, वह संग्रहनय है। जिस नय का विषय सम्यक् प्रकार से गृहीत जाति है, वह संग्रहनय कहलाता है।331 जो
330 त्रिविधस्तावन्नैगमः पर्यायनैगमः, द्रव्यनैगमः, द्रव्यपर्यायनैगमश्चेति । ............ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, नयविवरण, पृ.270 331 संगहियपिंडियत्थं संगहवयणं समासओ विति ........... ........... अनुयोगद्वार, गा.137, पृ. 467
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