________________
151
3. वर्तमाननैगमनय -
किसी अधूरे कार्य को जो आगे निष्पन्न होनेवाला हो उसे वर्तमान में निष्पन्न कहना वर्तमाननैगमनय है।24 प्रारम्भ की गई किसी क्रिया को निष्पन्न नहीं होने पर भी निष्पन्न सा व्यवहार करना वर्तमाननैगमनय है।25 कुछ अंश में पूर्ण तथा कुछ अंश में अपूर्ण क्रिया में वर्तमान का उल्लेख करने वाले नय को यशोविजयजी ने वर्तमान नैगमनय कहा है। जैसे भात पका रहा हूँ।26
जैसे कोई पुरूष चावल को पकाने की क्रिया कर रहा हो, उस समय किसी अन्य पुरूष के द्वारा यह पूछने पर कि क्या कर रहे हो ? तो वह व्यक्ति उत्तर देता है- भात पकाता हूँ। उस समय भात बना नहीं है, क्योंकि चावल पूर्ण रूप से पक जाने पर ही भात कहे जाते हैं। अभी तो भात के कुछ अवयव ही (हिस्से) सीझे हैं और शेष अवयवों का सीझना बाकी है। परन्तु उल्लेख तो ऐसा ही किया जाता है कि 'भात पकाता हूँ ओदनं पचति न कि 'भात पकाया है, ऐसा उल्लेख।27 यह वर्तमान नैगमनय का विषय है।
कारण को कार्यरूप में परिणत करने के लिए प्रयत्न प्रारम्भ हो जाने पर उस अपूर्ण कार्य को पूर्ण ही कहा जाता है। फिर भले कार्य पूर्ण होने में विलम्ब हो।328 उदाहरण के लिए भृगु पुरोहित के दोनों पुत्रों ने दीक्षा का दृढ़ संकल्प ही किया था। किन्तु दीक्षित नहीं हुए थे, फिर भी पुरोहित ने उन्हें मुनि कहा।29 इसी प्रकार दीक्षा के पूर्व ही नमिराज को राजर्षि कहा गया। यह वर्तमान नैगमनय के अनुसार कहा गया है।
324 कर्तुमारब्धं, ईषत् निष्पन्न
आलापपद्धति, सूत्र 67 325 अ) पारद्दा जा किरिया पचणविहाणादि .........
नयचक्र, गा. 207 ब) आरोपाद्धर्तमानश्च यथाभक्तं पचत्यसौ
........................... .... द्रव्यानुयोगतर्कणा, श्लो. 6/11 326 भूतवत् कहइ भावि नैगम ....
.. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 6/9 327 ए आरोप सामग्री
.......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.6/9 का टब्बा 328 नयवाद, मुनि फूलचन्द्र, पृ. 53 329 अह तायगो तत्थे मुणीण तेसिं
उत्तराध्ययन सूत्र, 14/8
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org