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प्रस्थ (अनाज मापने के लिए लकड़ी का पात्र) लेने जा रहा हूँ। उस समय प्रस्थ बना नहीं है। प्रस्थ बनाने का संकल्प होने से उसमें प्रस्थ का व्यवहार किया गया गया है। इसलिए अतीत और अनागत काल की पर्यायों में वर्तमान की तरह एवं वर्तमान की अनिष्पन्न पर्यायों में निष्पन्न की तरह संकल्प करने वाला नैगम नय है।311
लोकार्थ का बोधग्राही -
लोकार्थ बोध भी 'निगम' शब्द का एक अर्थ है। लोक से आशय लौकिक है। लौकिक दर्शनकारों ने जीवादि पदार्थों के सम्बन्ध में अपनी-अपनी मान्यतानुसार जो विचार व्यक्त किये हैं, उसे निगम कहते हैं। उसको समझाने में जो कुशल है वह नैगम नय है।312 इस तरह जो विचार लौकिकरूढ़ि या संस्कार के अनुसरण करने में उत्पन्न होता है, वह नैगमनय है।13 जैसे -
1. कलम लेने जा रहा हूं। 2. गांव आ गया है। 3. हिन्दुस्तान लड़ रहा है।
तत्त्वार्थधिगमसूत्र में उमास्वातिजी ने निगम का अर्थ जनपद या देश किया है। देश में जिन शब्दों का प्रयोग होता है, वे शब्द, उनका अर्थ तथा शब्दार्थ का परिज्ञान नैगमनय है। वह देश और समग्रग्राही है।314
'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में यशोविजयजी ने नैगमनय को बहुमानग्राही कहा है, जिसका तात्पर्य है सामान्य-विशेष ज्ञानरूप अनेक प्रमाणों से जो वस्तु को अपने दृष्टिकोण में लेता है, वह नैगमनय है।15 यशोविजयजी की यह परिभाषा
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कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गा.271 विशेषवश्यकभाष्य, गा. 2187
31| जो साहेदि अदीदं वियप्प 312 लोगत्थनिवोहा वा निगमा .. 13 तत्त्वार्थसूत्र-पं. सुखलालजी, पृ.40 11 निगमेषुयोऽभिहिताः शब्दास्तेषामर्था 315 बहुमानग्राही कहियो नैगम .............
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तत्वार्थधिगमसूत्र, 1/35 पर भाष्य द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 6/7
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