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अथवा धर्म व धर्मी दोनों को विषय करता है, वह नैगमनय है।06 नैगमनय महासामान्य सत्ता, अवान्तर सामान्य सत्ता द्रव्यत्व, गुणत्व, कर्मत्व को असाधारण विशेष तथा सामान्य से भिन्न अवान्तर विशेष को जानता है।307 यह नय सामान्य और विशेष दोनों को ग्रहण करता है।
उदाहरण - शास्त्रों में नैगमनय का दृष्टान्त 'निलयन' दिया गया है। 'निलयन' शब्द का अर्थ है निवासस्थान। जैसे किसी ने किसी से पूछा आप कहाँ रहते हो ? जवाब मिला कि मैं लोक में रहता हूँ। लोक में भी जम्बूद्वीप-भरतक्षेत्र–मध्यखण्ड-अमुकदेश-अमुकनगर–अमुकघर में रहता हूँ। नैगमनय इन सब विकल्पों को ग्रहण करता है।308
संकल्पग्राही -
जो निगम को विषय करे, वह नैगमनय है। निगम का एक अर्थ संकल्प भी है। जैसे कोई व्यक्ति बातचीत के प्रसंग में कहता है कि 'मैं चैन्नै जा रहा हूं' अर्थात् उसने चलना प्रारम्भ नहीं किया, मात्र जाने का संकल्प ही किया है। फिर भी वह व्यक्ति कहता है, 'चैन्नै जा रहा हूं।' इसी आधार पर नैगमनय को संकल्पग्राही कहा गया है।
सर्वार्थसिद्धि09 और श्लोकवार्तिक 10 में नैगमनय को अनिष्पन्न अर्थ में भी संकल्पमात्र को ग्रहण करनेवाला कहा है और अनेक उदाहरणों से समझाया गया है। जैसे कोई व्यक्ति हाथ में कुठार लेकर वन की ओर जाता है। उसे देखकर कोई अन्य व्यक्ति पूछता है- आप किस कार्य के लिए जा रहे हो ? वह उत्तर देता है -
906 श्लोकवार्तिक, 1/33/21, जैनतर्कभाषा, पृ. 59 107 तत्र नैगमः सतालक्षण महासामान्यम .... .................... स्यादवादमंजरी, श्लो. 28 पृ. 243 108 प्रवचनप्रसिद्ध निलयन प्रस्थदृष्टान्त द्वय .... 309 अनभिनिर्वृत्तार्थ संकल्प मात्रग्राही नैगमः ............. सर्वाथसिद्धि, 1/33 iii तत्र संकल्पमात्रस्य ग्राहको नैगमो नयः ................... श्लोकवार्तिक, 1/33/17
वही.
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