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________________ 145 चूंकि जीव की संसारी अवस्था अनित्य होने से संसारी अवस्था की कर्मोपाधि रहित शुद्ध पर्याय को अपना विषय करने वाले इस नय को आलापपद्धति में कर्मोपाधि निरपेक्ष अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय कहा है। 6. कर्मोपाधि सापेक्ष अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय - चारों गतियों के जीवों की अनित्य अशुद्ध पर्याय को ग्रहण करने वाला नय कर्मोपाधि सापेक्ष अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय है।298 जैसे संसारी प्राणी का जन्म-मरण । आलापपद्धति और द्रव्यानुयोगतर्कणा में भी यही परिभाषा दी है।299 उपाध्याय यशोविजयजी ने भी अनित्य अशुद्ध पर्याय का कथन करने वाले नय को ही पर्यायार्थिक नय के छठे भेद के रूप में स्वीकार किया है। जैसे संसारवासी जीवों को जन्म-मरण रूप व्याधि लगी हुई है।300 जन्म-मरण रूप व्याधि से युक्त जीव की पर्यायें कर्मसंयोगजनित होने से कर्मोपाधि सापेक्ष और अशुद्ध है। कर्मों का उदय प्रतिक्षण बदलता रहने से तज्जन्य पर्यायें भी बदलती रहती हैं। इस कारण से संसारी पर्यायें क्षणिक (अनित्य) हैं। एतदर्थ कर्मोपाधि सापेक्ष अनित्य अशुद्ध संसारिक पर्यायों को अपना विषय बनानेवाला नय पर्यायार्थिक नय का अन्तिम भेद है। यहाँ भी 'अशुद्ध' शब्द नय का विशेषण न होकर पर्याय का विशेषण है। क्योंकि यह पर्यायार्थिक नय स्वयं तो क्षणिक संसारिक पर्यायों को अपने दृष्टिकोण में लेने से शुद्ध है। किन्तु इस नय के विषयभूत पर्यायें क्षणिक–अनित्य-विभावरूप होने से अशुद्ध है। 298 भणइ अणिच्चासुद्धा चउगइ जीवाण...... नयचक्र, गा. 204 299 अ) कर्मोपाधि सापेक्ष स्वभावोऽनित्य-अशुद्ध पर्यायार्थिक ........ आलापपद्धति, सूत्र 63 ब) अशुद्धस्य तथा नित्य पर्यायार्थिकऽन्तिम . द्रव्यानुयोगतर्कणा, श्लो. 6/7 ___300 पर्याय अर्थो अनित्य अशुद्धो ....... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 6/6 301 इहां जन्मादिक पर्याय जीवना ... .................. वही, गा. 6/6 का टब्बा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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