________________
142
अशुद्ध दोनों प्रकार की होने से यहाँ शुद्ध पर्याय यही अर्थ करना होगा। क्योंकि सिद्धों की पर्याय शुद्ध होती है।
3. अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय -
___सत्ता को गौण करके उत्पाद-व्यय को ग्रहण करने वाला नय अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय है। जैसे प्रतिसमय पर्याय का परिवर्तन होता है।284
जो भी वस्तु है, वह प्रतिसमय उत्पन्न होती है, नष्ट होती है और ध्रुव भी रहती है। क्योंकि सत् का लक्षण उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य है। इन उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य में से उत्पाद और व्यय को प्रधानता से और ध्रौव्य को गौण रूप से ग्रहण करने वाला नय अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय है।285
यशोविजयजी ने भी उत्पाद-व्यय को मुख्य रूप से तथा सत्ता को गौण रूप से ग्रहण करने वाले नय को ही पर्यायार्थिक नय का तीसरा भेद बताया है।286 एक पर्याय प्रतिसमय नाश भी होती है तथा दूसरी पर्याय उसी समय उत्पन्न भी होती है। ऐसी उत्पाद-विनाशशील पर्यायें इस नय का विषय है। मेरू या सिद्धावस्था में भी यह नय सूक्ष्म-सूक्ष्मतर-सूक्ष्मतम परिवर्तनों को अपने दृष्टिकोण में लेता है। संस्थानादि बाह्य पक्ष को जो मुख्यरूप से विषय बनाता है, वह पहला व दूसरा पर्यायार्थिक नय है।287
द्रव्य में प्रतिसमय घटित होने वाले उत्पाद-व्यय को ही ग्रहण करना पर्यायार्थिक नय का मुख्य दृष्टिकोण है। क्षणिक या अनित्य को अपना विषय बनाने से यह अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय है। संक्षेप में प्रतिक्षण पूर्व पर्यायनाश, उत्तरपर्याय
284 अ) सत्ता-गौणत्वेन उत्पाद-व्यय-ग्राहक
ब) सत्ता अमुक्खेरूवे उत्पादवयं हि गिण्हए जो हु ..... 25 सत्ता गौणतयोत्पाद व्यययुक् सदनित्यकः 286 सादि नित्य पर्याय अरथो ............. ............... 27 द्रव्यगुणपर्यायनोरास-भाग 1 - अभयशेखरसूरि, पृ. 216
आलापपद्धति, सूत्र.60 नयचक्र, गा.201
द्रव्यानुयोगतर्कणा, श्लो.6/3 ..... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.6/3
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org