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________________ 140 प्रस्तुत ग्रन्थ में भी पुद्गल के अनादि नित्य पर्यायों को विषय बनानेवाली दृष्टि को अनादि नित्य पर्यायार्थिक नय कहा गया है।276 यहाँ एक बात दृष्टव्य है कि नयचक्र, आलापपद्धति या द्रव्यगुणपर्यायनोरास में 'शुद्ध' शब्द नहीं है। परन्तु यशोविजयजी कृत स्वोपज्ञ टब्बे में 'शुद्ध' शब्द पाया जाता है। स्वोपज्ञ टब्बाकार पूज्य उपाध्यायजी ने 'शुद्ध' शब्द का प्रयोग इस नय के विशेषण के रूप में ही किया होगा। क्योंकि शुद्ध पर्यायार्थिक नय तो वही हो सकता है जो मात्र क्षणिकत्व को ग्रहण करता है और नित्यांश को गौण करता है। अतः यशोविजयजी के अनुसार क्षण-क्षण मेरू आदि के रूप में परिणत क्षणिक पुद्गल पर्यायों को अपना विषय बनाने से पर्यायार्थिक नय का प्रथम भेद अनादि-नित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय है। यह नय क्षणिक पर्यायग्राही होने पर भी प्रवाह की दृष्टि से अनादि नित्य पुद्गल पर्यायों को भी ग्रहण करता है। - यह नय प्रतिक्षण परिवर्तनशील, किन्तु समान प्रकार की निरन्तर चलने वाली पर्यायों को ग्रहण करता है। अनादिकाल से चलते रहने के कारण ये अनादि और निरन्तर प्रवाहरूप चलती रहने से नित्य कही जाती है। जैसे- गंगा नदी अनादिकाल से प्रवाहशील है। अतः अनादि है तथा अपनी निरन्तर बहती रहनेवाली अविच्छिन्न धारा की अपेक्षा नित्य कही जाती है। 2. सादि नित्य पर्यायार्थिक नय - सादि नित्य पर्याय ही जिसका विषय है, वह सादि नित्य पर्यायार्थिक नय है। जैसे सिद्ध पर्याय । सिद्ध पर्याय कर्मक्षय से उत्पन्न होने से सादि तथा कभी विनष्ट 276 षड़ भेद नय पर्याय अरथो पहिलो अनादिक नित्य रे, ........ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 6/1 277 तिहां पहिलो अनादि नित्य शुद्ध पर्यायार्थिक, ............. वही, टब्बा 278 सादि-नित्य-पर्यायार्थिको यथा सिद्धपर्यायो नित्यः ...................... आलापपद्धति, सू. 59 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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